23 मार्च 2011

ज़िंदगी


जीवन खोजता  रहा
 अपना अस्तित्व मुझमें ,
 और मै वो चिन्ह जो  
जिंदा  होने का प्रमाण दे सकें उसे ,,  ,मेरे !  
धडकनें जिंदा होने का सबूत नहीं होतीं 
 चलन है कि, देह रहित नाम जीते  हैं
धरती पर 
कभी मंदिरों के पत्थरों में 
आस्था भरे  ,कभी 
बीच चौराहे पर स्मारक के  
सूखे फूलों की मालाओं में,या 
 किताबों के पीले पन्नों में से 
उनींदे से झांकते मटमैले शब्दों में    
और  ज़िन्दगी कहा जाता है जिसे वो,
लयबद्ध ''जिंदा''धडकनों में हांफती 
अलयबद्ध ज़िंदगी मजदूर की
या
वो  पागल औरत 
स्टेशन पर रूखे बिखरे बालों 
पपड़ी पड़े ओठ और त्वचा की दरारों से 
झाँकतीं ज़िन्दगी /विवशता 
जिसकी धडकनों को फ़क़त 
ज़िंदगी का लिहाज़ है !
और ज़िंदगी को इंतज़ार 
क़ैद से आज़ाद होने का ! 

16 मार्च 2011

पिता


बूढ़े पिता की देह पर ,लहराती लोटती
वो लहरें,वो बच्चियां समंदर की
मुस्कराता समंदर,उछालता हवा में
कभी,ठेलता किनारों तक उनको !
थामे एक दूसरे का हाथ ,छम छम करतीं
चमकतीं भुरभुरी रेत को भिगोती,छूतीं
और दौड जातीं फिर पेट पर पिता के
उमडती ,अठखेलियाँ करतीं खेलतीं
लौट लौट आतीं फिर फिर
लयबद्ध अंतर्ध्वनियों ने खोज लीं हैं कुछ  
संकेत लिपियाँ ,समंदर की
खामोशी को हाशिए पर खिसका
सांझ ढले पस्त हो जातीं लहरें
छिप जातीं फिर गोद में पिता की !
रेत की वो सिलवट, वो आकृतियाँ  
पीछे पीछे सरकती ,
खोज़ने आतीं कुछ दूर उनको
ज्यूँ बच्चा माँ की उंगली पकडे
चला जा रहा हो पीछे पीछे

7 मार्च 2011

टुकड़े


तुम्ही ने तो ग्रंथों में लिखी थी
देह के मिटटी होने की बात!
तुम्हीं ने तो रोंपी थी हमारे रक्त में,
पशु से अलग मनुष्य होने की
तुलनात्मक व्याख्या !
तुम्ही ने तो किये थे हिस्से हमारे
आधार बना कर्मों को?
तुम्ही ने तो ताज बना ‘दंभ’को,
पहन लिया था स्वयं के मस्तक पर?
और लाद दिए थे कुछ उसूल
हमारी पीठ  पर ?
तुम्हारे बनाये ‘’एक रक्त एक रूह’’के विरोधाभास
जीते रहे खुद को टुकड़ों में,
कभी वातानुकूलित डब्बों की सुविधाजनक
कोमल साँसों के बीच,और
कभी प्रकृति के संतापों को
ज्यूँ का त्यूं निर्वस्त्र भोगते देह से आत्मा तक?
क्यूँ एक हिस्सा नहीं चाहता खत्म होना जिंदगी का सिलसिला?
क्यूँ दूसरा मौत का इंतज़ार करता है?
क्यूँ एक की किताब में है सिर्फ परिभाषा जिंदगी की?
क्यूँ दूसरा मौत को ओढता बिछाता है?
कब तक धडकनों में पिघलता रहेगा फौलाद ?
कब तक जीवन को उबाते  रहेंगे वही प्रशन ?
कब तक सच इंधन - सा जलता रहेगा दिल में?
आखिर कब तक हौसले को  परीक्षा देनी होगी हमारे?
और कब तक चलता रहेगा सिलसिला
दूसरों की छवियों में  घटित होते चले जाने का?

6 मार्च 2011

खुशियाँ




मुझ जैसे बेसब्र लोग,
बड़ी खुशियों की ,छोटी संभावनाओं को
बर्दाश्त ज़रा कम कर पाते हैं,
लिहाजा, बेवजह सी घटनाओं में
 खुश रहने कि वज़हें ,
खोज लेते हैं  ,सो....
खुश हो जाती हूँ मैं ....
अपंग भिखारी के हाथ पर सिक्का रखकर,!
कूड़े के ढेर में खाध्य पदार्थ खखोरते,
भुखमरे बच्चों को ,कुछ भोजन अंश मिल जाने पर,!
, एक संघर्ष शील योद्धा की तरह ,
महिला दिवस का पर्व मना,तमाम दोष
पुरुषों के सर मढकर
 ‘’हिंदी दिवस ‘’पर हिंदी के कसीदे और ‘’वेलेंटाइन डे ‘’पर
प्रेम का इज़हार करके के!
 वॉशिंग मशीन के साथ एक साबुन कि बट्टी फ्री पाकर,!
,किसी ‘’पुरूस्कार’’का विरोध और ‘’पुरूस्कार ठुकराने ‘’वाले को
महान घोषित करके ...
,किसी गीत या फिल्म पर अश्लीलता का आरोप मढ़कर
अब तो मत कहो कि खुशियाँ कम हैं जिंदगी में...!

5 मार्च 2011

ख़ामोशी



कितना वाचाल है समंदर का ये अबोलापन ,
जो फैला है मीलों से,दिल तक मेरे !
मचलती लहरें,फुदकती हैं किनारों तक,
और लौट आती हैं ,फिर फिर
किनारों से गले मिल !
ज्यूँ सपने साकार होते होते ,
लौट जाएँ आँखों में फिर से !
बातें करता है ये मुझसे अपने एकाकीपन कि,
तन्हाई मैं डूबते हवा के झोंकों और ,
उनके बिखर जाने की ...सपनों कि तरह...!
कहानी कहता है,नदियों में खुद के समा जाने की!
तपते सूरज को अपने नरम आगोश में पनाह देने की!
मछली को मछली बने रहने की  !
पूछता है वो मुझसे, मेरे भीतर सुलगती नदियों की बात ,
टटोलता है उन तूफानों के स्त्रोत ,जिन्हें
पहेली बने अरसा हुआ !
जानती हूँ एक दिन खामोश हो जायेगा ये,
और मेरे कान भी !
देखेंगे हम दोनों बस
भीतर कुछ घटते हुए !


2 मार्च 2011

सपने



                    
सपनों की पटकथा ,नींद लिखती है,
और द्रश्य उसे आँख बना देते हैं !
क्षणिक विरासत ,मुंदी हुई आँखों की ,
खुलते ही तितली हो जाती है...!
आँखों से आत्मा तक भीगते ,कुछ आकंठ सपने ,
कुछ चुपचाप लौट जाते , पलकों में उनींदे से !
कुछ लघु-कथाएं सपनों की ,
बिखेर देती हैं ज़ज्बे ....
और कुछ कहानियां बगैर अंत के
डूब जाती हैं ,अंधेरों के साथ..!
अनंत आकाश में अकेले पक्षी से उड़ते
कुछ उदास सपने और,
कुछ समुद्र कि सिलवटों पर जलपंछी से उतराते
निर्दोष ख्वाब, !
चंद ही तो अहसास हैं ,जहाँ हम आज़ाद हैं
उन पर वश नहीं हमारा ,ये अलग बात है !