31 जुलाई 2011

परिष्कार



  हवाओं को रस्ते बदलते देखना
 उगते सूरज की दिशा में सहसा ,
वास्तव में आत्मा से एक भारी पत्थर के
सरक जाने-जैसा था , एक उत्सव  
देह से मन तक लंबी दीवारें ढह जाने का ....!
 अन्खुयाये पंखों ने उड़ना सीखा तभी ..  
उस क्षितिज तक जो तय करता है भविष्य
उन दिशाओं का जिसमे होकर बहेंगी सुगन्धित हवाएं  ....
जिंदगी बिखेर ली है मैंने ,मेरे इर्द गिर्द
इतवार की ‘डस्टिंग’ की तरह
बीन रही हूँ उसमे से
उपियोगी-व अनुपयोगी सच
कुछ मुखौटों और प्लास्टिक के खिलौनों को जिन्होंने
दिल बहलाया था मेरा बचपन में
सौंप दिया है कुछ ज़रूरत मंदों को
स्थगित कर दिया है वो कलुषित हंसी,झूठी तसल्ली  
से उगे ज़र्ज़र तकलीफदेह लम्हों को
जिनकी टीस ,हालातों की विवशता रही  
पर फेंकना उतना ही सरल
रख लिया है चंद यादों को सहेजकर
जिन्होंने सच से रु ब रु कराया
पर सबसे मुश्किल था
उन खूबसूरत लंबी सड़कों का सच
मंजिल तक पहुँचने से पहले जिनके
सिरे बंद हो गए होंगे
या खुद को मोड लिया होगा उन्होंने
दूसरे रास्तों की ओर ...
पर आकर्षक हैं ये हरे भरे सुगन्धित ,इन्हें
शायद रखूं ....
या नहीं या किसी ऐसी जगह
जिनके होने का अहसास ये खुद खो चुकी हों....










6 टिप्‍पणियां:

  1. जिंदगी बिखेर ली है मैंने ,मेरे इर्द गिर्द
    इतवार की ‘डस्टिंग’ की तरह
    बीन रही हूँ उसमे से
    उपियोगी-व अनुपयोगी सच
    इस रचना की संवेदना, शिल्पगत सौंदर्य और प्रयुक्त बिल्कुल नए बिम्ब मन को भाव विह्वल कर गए हैं।

    जवाब देंहटाएं
  2. रख लिया है चंद यादों को सहेजकर
    जिन्होंने सच से रु ब रु कराया
    पर सबसे मुश्किल था
    उन खूबसूरत लंबी सड़कों का सच
    मंजिल तक पहुँचने से पहले जिनके
    सिरे बंद हो गए होंगे ....

    अनुपम अभिव्यक्ति...
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  3. रख लिया है चंद यादों को सहेजकर
    जिन्होंने सच से रु ब रु कराया
    पर सबसे मुश्किल था
    उन खूबसूरत लंबी सड़कों का सच
    मंजिल तक पहुँचने से पहले जिनके
    सिरे बंद हो गए होंगे
    या खुद को मोड लिया होगा उन्होंने
    दूसरे रास्तों की ओर .बहुत ही गहन और सार्थक अभिब्यक्ति /बधाई आपको /

    जवाब देंहटाएं