लीडिया एविलोव महान
लेखक एन्टोंन चेखव की प्रेमिका थीं और ये प्रेम निस्संदेह इकतरफा नहीं था (प्रसंग
बताते हैं ) लेकिन उसने ताउम्र एक असफल प्रसंग की विडम्बना झेली |लीडिया,जो चेखव
से चार वर्ष छोटी और उस वक़्त सिर्फ चौबीस बरस की एक शादीशुदा स्त्री थीं ने ‘’चेखव
इन माय लाइफ’’चेखव की मौत के कई वर्षों बाद लिखा था |इस किताब में उनके असफल प्रेम
का ज़िक्र है लेकिन इस आत्म कथ्य नुमा किताब में चेखव की सोच आदतें ,सामाजिक
स्थितियों का जायजा लिया जा सकता है जो स्वाभाविकतः उसमे प्रकट होता है |चेखव के
जीवन के आसपास की कई घटनाएँ उसमे व्याख्यायित हैं जिनका वर्णन चेखव ने अपने
सुप्रसिद्ध नाटक की प्रष्ठभूमि ‘’द सी गल’’में किया है |एक जगह जब लीडिया अपने सबसे
चहेते लेखक चेखान्ता (चेखव का छद्म नाम ) से पहली बार मिलती हैं और लेखिका की
सहेली द्वारा उनका परिचय एक लेखन प्रिय स्त्री’’ के रूप में कराया जाता है तो चेखव
मुस्कुराते हुए कहते हैं ‘’लेखक को वही लिखना चाहिए जो उसने देखा और भोगा है ,पूरी
सच्ची और इमानदारी के साथ |मुझसे अक्सर पूछा जाता है कि किसी कहानी के पीछे मेरा
आशय क्या था तो मैं चुप रह जाता हूँ |मेरा काम सिर्फ लिखना है...सिर्फ लिखना |
अनुभव विचार को ज़न्म देता है विचार अनुभव को ज़न्म नहीं दे सकता |’’ लीडिया एविलोव
से पहले चेखव का प्रेम प्रसंग एक अभिनेत्री लीडिया यावोस्कार्या से भी चला था लेकिन
उसकी परिणिति भी दुखद रही |टोलस्तोय और चेखव के सम्बन्ध अद्भुत थे |चेखव’ उनकी
आदर्शवादिता और धार्मिकता की आलोचना करते हुए भी उन्हें पसंद करते थे |तोलस्तोय
इनके कटु आलोचक थे बावजूद इसके चेखव को कभी उनसे शिकायत नहीं रही |चेखव ने अपने मित्र को बताया की मैंने तोलस्तोय
से पूछा की उन्हें मेरे नाटक कैसे लगते हैं उन्होंने कहा खराब ...वजह?मैंने पूछा
तो उन्होंने कहा कि वो नाटक शेक्सपियर के नाटकों से भी घटिया हैं ‘’|(सन्दर्भ
सूत्र –‘’मेरी ज़िंदगी में चेखव –अनुवादिका रंजना श्रीवास्तव मूल लेखिका लीडिया
एव्लोव )
यहाँ मैं चेखव के
विश्व प्रसिद्द नाटक वॉर्ड नंबर 6 का ज़िक्र करना
चाहूंगी |यूँ तो उन्होंने ‘’द सी गल ‘’समेत कुछ नाटक लिखे थे लेकिन वार्ड नंबर
सिक्स अद्भुत नाटक था जिस पर एक हिंदी फिल्म ‘’खामोशी’’ भी बनी थी |इसके जीवंत और
अत्यंत मार्मिक द्रश्य उनके अपने जीवन के काफी करीब के अनुभव थे | इस नाटक के मंचन
को देखने का सौभाग्य मिला था जिसने सच कहूँ तो कई दिनों की नींद उड़ा दी थी जिसका
सबब था उसका कसा हुआ निर्देशन और झकझोर देने वाली पटकथा और द्रश्य |
दरअसल क्रांतिकारी
गदय साहित्य की जो महान परम्परा तुर्गनेव , चेर्नीशेव्स्की ,ताओलास्तोय आदि से
शुरू हुई थी वो चेखव तक अपने स्वर्ण काल में रही |उसी काल में मोपांसा साहित्य के
शीर्ष स्थान पर पहुँच चुके थे जिन्हें यथार्थवादी साहित्य का पिता भी कहा जाता है
|तोलस्तोय चेखव के आलोचक रहे लेकिन उन्होंने और चेखव दौनों ने ही मोपांसा के
साहित्य की मुक्त कंठ से प्रसंशा की |चेखव और मोपांसा दौनों को कम उम्र मिली लेकिन
उतनी ही आयु में उन्होंने खुद को कालजयी लेखकों की श्रेणी में खडा कर दिया था
|कहना गलत न होगा कि यथार्थवादी कहानी को विकसित करने व् ऊँचाइयों तक पहुँचाने का
काम जिन दो लेखकों ने किया वो चेखव और मोपांसा ही थे |