वर्ष 2017 में कुछ नई आहटें सुनाई दे रही हैं | कुछ
पत्रिकाओं में कहानियां प्रकशित होने की सूचना मिली है |इस वर्ष दो कहानी संकलन
आने की खबर हैं |एक जनवरी में और दूसरा अप्रेल – मई तक | हमेशा ही आयोजनों व् आमंत्रणों में जाने से कुछ
हिचक होती रही लेकिन पहली बार किसी साहित्यिक आयोजन में भागीदारी करने के आमंत्रण
को स संकोच स्वीकारा है |
पिछले तीन वर्ष
घनघोर यात्राओं में गुज़रे | अनजाने में ही सही , यात्राएं लिखने की पूर्व तैयारी होती हैं , बल्कि हर नई यात्रा
दिमाग में एक नयी किताब बनकर खुलती है |तीन वर्ष की मेहनत और देश विदेश की
यात्राओं ( अनुभवों )का लेखा जोखा हैं ये किताबें जिन्हें ‘’कहानी’’होने से पूर्व
डायरी रूप में लिखा गया| गाँव की छुटपुट यात्राओं से लेकर अपने शहर ,कस्बों व्
विदेश यात्राओं तक कुछ ऐसे अनुभव हुए जो असोचे , अनोखे व् अभूतपूर्व थे| जो सिमटती
करीब आती दुनिया और समस्त भू मंडल के एक बड़े बाज़ार में तब्दील होते जाने के पुख्ता
सुबूत भी थे |बाजार में निरंतर परिवर्तित होते आपसी रिश्ते , प्रेम , घृणा , सामंजस्य
देखकर कहीं खुशी हुई कहीं निराशा और कहीं गहरा आश्चर्य और दुःख | ये कहानियाँ
इन्हीं रिश्तों व् घटनाओं का समुच्चय हैं | मेरा मानना है कि लेखक स्वयं अपना सबसे
बेहतरीन आलोचक और प्रशिक्षक होता है |बशर्ते कि वो अपना आकलन वैचारिक निर्ममता और
स्वयं को एक दूसरा व्यक्ति मानकर करे | इस लिहाज से इन संकलनों को लेकर कुछ उत्साहित
भी हूँ | लघु पत्रिकाओं के लेखकों के भी अपने पाठक होते हैं |जो जहाँ हों, कहानियाँ पढ़ते ही नहीं फोन या
मेसेज कर उन पर अपनी प्रतिक्रया भी देते हैं | सेल्फ प्रमोशन में गैरहुनरमंद और प्रमोटर
विहीन रचनाकारों के लिए यही पाठक गन उनकी पूंजी हैं |कोशिश तो यही की है कि
प्रबुद्ध व् सामान्य सभी पाठकों को कहानियों में कोई ज़ल्दबाजी और हडबडाहट महसूस न
हो | समाज में ‘’क्या और क्यों’’ सिर्फ इतना ही काफी नहीं बल्कि समाज कैसा होना
चाहिए इस पर विचार करना भी हमारा ही काम है| मुझे खुशी है कि इन दौनों किताबों के ब्लर्ब
हिंदी के वरिष्ठ प्रतिष्ठित , चर्चित और मेरे प्रिय रचनाकारों ने लिखना स्वीकार
किया |उन्हें और दौनों प्रकाशकों को धन्यवाद |