वो करीब करीब भाग रही थी !
पति के हकों और खुद की विवशताओं को
पल्लू में बाँध, कमर में खोंसे !
सदा की तरह ....!
अंगों की खरोंचों को छिपाती !
घाव, जो उगे हैं कल ही
पुराने सूखने से पहले!
पोर पोर दरद से दहकता
पर जाना ही है उसे काम पर! पता है कि ‘’मेम साब’’
भला बुरा कहेगी देर से आने पर!
आज झाड़ू फटका नहीं करेगी कह देगी मेम साब से कि ,
बिटवा को ताप है!दवा के पैसे चाहिए !
पर, जानती है वो
इसे बहाना मानते हुए, धमकाया जायेगा
भूखों मरने की बद्दुआ दी जायेगी
पर इसमें नया क्या,तो डरना भी क्या?
खा लेगी वो डाट भी,
बेटे की तपती देह के लिए !
आज एक तारीख है ,वो भी तो आयेगा भाड़ा लेने खोली का !
फिर जिरह करेगा, गंदी गलियां बकेगा !
पूरी स्त्री जाती को कलंकित करती !
.दूर से दिख रहे हैं कुछ लोग झंडे लिए, हाथ लहराते हवा में
नारों से फटा जा रहा आसमा, जैसे उसका दिल
बेटे के ताप को रूह तक भिगोता !
नारे आ रहे थे करीब और करीब ,जोशीले ,भडकते
उसने देखी, नारों के पीछे दुबकी सी सुनहले भविष्य की रौशनी
जो शायद नारेबाजों की सुलगती आँखों से फूट रही थी !
वो ठहर गई, भीड़ और उखड़ी सांसों को रास्ता दे !
सड़क गुजर रही थी उसकी अगल बगल से और,
वो खड़ी थी भीड़ में घिरी अकेली ..
उसने पूछा ....साब,कब खत्म होगी ये भीड़?
जब तक जगेगी नहीं सरकार ....
सरकार कब जगेगी?
जब क्रांति आयेगी .......
उससे क्या होगा ?
भ्रष्टाचार मिटेगा !....
ये भ्रष्टाचार क्या होता है?
जिसके लिए हम वेद्रोह कर रहे हैं .....
विद्रोह क्या होता है ?
जिससे सरकार की नींद उडती है!
नींद तो बिटवा को भी नहीं आई दो रोज से!
तुझे बेटे कि पडी है ,यहाँ देश अनशन कर रहा है चार दिनों से
रोटी तो हमने भी नहीं खाई साब, कई दिनों से.......
देश करवट ले रहा है नहीं जानती क्या?
अच्छा?उसकी ऑंखें चमक उठीं
तब से सो रहा था पता ही नहीं चला ?
तो क्या अब भरपेट खाना मिलेगा हमें ?
.........................................................
सरकार ईमानदार हो जायेगी?
..............................................
ये भीड़ छंट जायेगी?
.....................................................
मरद को रुजगार मिल जायेगा?
..................................................
बिटवा के स्कुल कि फीस ?
.................................................
मै काम पर चली जाउंगी?
....................................................
बेटे को दवा मिल जायेगी?
................................................
वो बडबडा रही थी खुशी में बौराई!
देश न जाने कबका
आगे निकल चुका था !
वो वहीं खड़ी थी सड़क के बीचों बीच ! ......!