बंबई न जाने कब
चुपचाप एक दिन मुम्बई हो गयी और कलकत्ता कोलकाता पता ही नहीं चला लेकिन ....|एक
तरफ जातिवादिता को गरियाया जाता है तो दूसरी और गुर्जर, जाट पटेल जैसे संपन्न, दलित
कहलाने को व्याकुल लोग आरक्षण की मांग करते हैं |लाखों की संपत्ति फूंक दी जाती है
, लोग मरते हैं ,बलात्कार होते हैं ... |
देश को आजाद हुए , उसका अपना संविधान बने ,उसे लोकतंत्र का दर्जा मिले सात दशक
होने को हैं लेकिन आज़ादी की जो अभिव्यक्ति अब देखने को मिल रही है वो अभूतपूर्व है
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