25 सितंबर 2010

धोखा

किसी को देकर धोखा,
गिर जाते हैं खुद की ही नज़र में
हम,
पहचानो उस हलकी सी आवाज़ को
टूटती है जो,
भीतर तक कहीं......
मगर हौले से ,
किसी से खाकर धोखा,
सिमट हैं सारे यकीन
,टूट जाती हैं लकीरें
किस्मत की,
डूब जाते हैं सितारे
सरे शाम
बंद हो जाती हैं
खिड़कियाँ
आशाओं की

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