6 अक्तूबर 2010

ख़ामोशी ?

कितना तकलीफदेह होता है
अधूरे सपनों को
फिर सी पलकों में
भींच लेना?
या कि,खुबसूरत यादों को
ज़हन से बेदखल कर पाना
या ,
अविस्मरनीय पलों की
कसमसाहट से
खुद को समेट सकना
और कितना आसान होता है
किसी को सपने दिखा
खामोश हो जाना

6 टिप्‍पणियां:

  1. फिर सी पलकों में- फिर से पलकों में


    -बहुत गहन विचार.

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  2. कितना आसान होता है
    किसी को सपने दिखा
    खामोश हो जाना
    सपने दिखाने वाला भी कब खामोश हो सकता है. वह भी तो सपने देखा है तभी तो सपने दिखा रहा है
    सुन्दर और शानदार रचना

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  3. बहुत सुंदर भाव |आपका सोच सराहनीय है |बधाई

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  4. और कितना आसान होता है
    किसी को सपने दिखा
    खामोश हो जाना

    भावमयी प्रस्तुति

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  5. और कितना आसान होता है
    किसी को सपने दिखा
    खामोश हो जान
    चंद लफ़्ज़ों मे ही ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा कह दिया।

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  6. धन्यवाद ,आप सभी को!आप जैसे सुधी पाठक मेरे ब्लॉग को पढ़ते और सराहते हैं ,निस्संदेह आपकी टिप्पणी मुझे प्रोत्साहित करती हैं!
    पुनः धन्यवाद्
    वंदना

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