5 मार्च 2011

ख़ामोशी



कितना वाचाल है समंदर का ये अबोलापन ,
जो फैला है मीलों से,दिल तक मेरे !
मचलती लहरें,फुदकती हैं किनारों तक,
और लौट आती हैं ,फिर फिर
किनारों से गले मिल !
ज्यूँ सपने साकार होते होते ,
लौट जाएँ आँखों में फिर से !
बातें करता है ये मुझसे अपने एकाकीपन कि,
तन्हाई मैं डूबते हवा के झोंकों और ,
उनके बिखर जाने की ...सपनों कि तरह...!
कहानी कहता है,नदियों में खुद के समा जाने की!
तपते सूरज को अपने नरम आगोश में पनाह देने की!
मछली को मछली बने रहने की  !
पूछता है वो मुझसे, मेरे भीतर सुलगती नदियों की बात ,
टटोलता है उन तूफानों के स्त्रोत ,जिन्हें
पहेली बने अरसा हुआ !
जानती हूँ एक दिन खामोश हो जायेगा ये,
और मेरे कान भी !
देखेंगे हम दोनों बस
भीतर कुछ घटते हुए !


14 टिप्‍पणियां:

  1. पूछता है वो मुझसे, मेरे भीतर सुलगती नदियों की बात ,
    टटोलता है उन तूफानों के स्त्रोत ,जिन्हें
    पहेली बने अरसा हुआ !
    behad sundar abhivyakti.

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  2. शुक्रगुज़ार हूँ वंदना जी !आपका प्रोत्साहन निस्संदेह पर प्रेरणा देता है मुझे...

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  3. धन्यवाद मृदुला जी ,आपको कविता अच्छी लगी !

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  4. सुंदर रचना ...... सुंदर बिम्ब के साथ विचारों की गहन अभिव्यक्ति.....

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  5. बातें करता है ये मुझसे अपने एकाकीपन कि,
    तन्हाई मैं डूबते हवा के झोंकों और ,
    उनके बिखर जाने की ...सपनों कि तरह...!

    सुंदर रचना

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  6. बहुत सुन्दर ..मन के समंदर का अबोलापन भी बहुत शोर करता है

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  7. स्वागत है आपका कुस्वंश जी ''चिंतन''में !धन्यवाद

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  8. संगीता जी ,नमस्कार..बहुत दिन बाद देखा आपको ...:)!
    शुक्रिया ,

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  9. बहुत गहन चिंतन...बहुत संवेदनशील प्रस्तुति..

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  10. पूछता है वो मुझसे, मेरे भीतर सुलगती नदियों की बात ,

    खूबसूरत.

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  11. ज्यादा मत बैथिये समुद्र के पास वर्ना न जाने क्या क्या पूच्हेगा.

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  12. bahut shukrguzaar hun apki manpreet .achcha laga apko ''chintan''par dekh !apko bhee ''mahila divas kee dheron shubhkamnayen apka blog zaroor padhungee :)

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