5 अप्रैल 2011

उलझन



बेटे से निराश रहती हूँ ..
उसके हमउम्र
दुकानों पर मोल भाव करते हैं
एकाध साल में ‘’घर’’ भी आ जाते हैं
महगाई का रोना रोकर भी
महगाई की कद्र करना जानते हैं ,
रिश्वत देकर काम निकालना और
कहाँ कैसा व्यवहार करना
खूब समझते हैं
और मेरा बेटा !
जिसकी नौकरी छूटने के कगार पर है
आ जाता है चाहे जब कहता है
तुम मेरे लिए नौकरी से ज्यादा ज़रूरी हो
ऐसा होता है क्या(होना चाहिए?)
 कि बचपन में जो शिक्षा दें
उतार ली जाय  जीवन में ज्यूँ की  त्यूं
अपने हर दुःख तकलीफ, मेरी न हो जाये इसलिए
छिपाता रहता है मुझसे, हँसते हुए
नहीं जानता कि मै उसकी माँ हूँ
मेरे  जिस्म का हिस्सा है वो,पर  
मै भी छिपाती रहती हूँ उससे
उसके दुःख ,उसकी तकलीफें 

हम दोनों हँसते हैं खूब
चुटकुलों पर,नकलों पर ,फिल्मों पर
पर भीतर सुलगता  रहता है कुछ
भविष्य सा. 

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत शुक्रिया वंदना जी ...ज़रूर चर्चा मंच देखूंगी!

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  2. संगीता जी नमस्ते !कैसी हैं आप?:)धन्यवाद

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  3. बहुत धन्यवाद सुमित जी....स्वागत है आपका चिंतन में :)

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  4. ajeeb uljhan hai....jin uljhano ko jab ham janm dete hain aur khud hi fans jate hain to koi raasta nazar nahi aata. sunder abhivyakti.

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  5. माँ बेटे के संबंधों पर सुंदर अभिव्यक्ति |
    आशा

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