17 सितंबर 2011

पीढियां


उसकी समस्त शिक्षा ,ब्राहमणत्व का दंभ
एक पल में ढह गया था उस दिन,
जब भीषण अपराध बोध को ओढ़े
माँ ने अत्यंत गोपनीयता से बताया था  
उसके अश्वत्थामा के कुल के होने का रहस्य ..
उसने तो सुने थे बस गाँधी नेहरु के वंशज
देखी थीं बिरला अम्बानी की संतानें
बच्चों को जाति छिपाने की हिदायत से भी
ज्यादा गंभीर प्रकरण होगा ये, 
 जानने के लिए तब उसकी उम्र कच्ची थी  !.....
ये किसी सत्य का पीढ़ीगत दुराव था ...
हालाकि उसके पूर्वजों में शायद ही किसी ने ह्त्या की हो
या मित्र ने स्वार्थ व कलुष वश ,मित्र को ढाल बनाया हो
ना ही धोखे से किसी ने किसी की जान ली 
 किसी गुनाह के प्रायश्चित का अवसर भी नहीं आया ?
सब बचपन को खेलते ,जवानी का उत्सव मनाते,और बुढ़ापे को संयम से बिताते
बीत गए इस संसार से .....
कभी २ सोचती है वो  
क्यूँ नहीं याद आते उन्हें कौरव-पांडवों के आदर्श
 गुरु द्रोण......
जिनकी संतान था अश्वत्थामा ?
क्यूँ नहीं याद आता भूख से तडपते हुए
पुत्र की दशा ना देख पाने पर मित्र द्रुपद से
सहायता मांगने गए द्रोण का अपमान ?
क्यूँ नज़रंदाज़ करती रही पीढियां अश्वत्थामा का
मित्र दुर्योधन से पांडवों से मित्रता करने का अनुरोध?
क्यूँ भुला दिया जाता है उसके साथ हुए षड्यंत्रों का हिस्सा?
सिर्फ सुलग रही है ये पीढ़ी सदियों से
अश्वत्थामा के गुनाहों की राख तले
 द्रुपदी के पांच पुत्रों की हत्या का गुनहगार ?
जबकि खुले घूम रहे हैं
हजारों माओं के पुत्रों के हत्यारे,
खुल्ले आम इसी धरती पर ?..
क्यूँ अश्वत्थामा ही भटक रहा है पहाड़ों पहाड़ों
फफोलों और मवाद से भरे ज़ख्मों को ढोते
इस पीढ़ी के दृश्यों में ?

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति....अभिव्यंजना में आप की प्रतीक्षा है..सादर आमंत्रित हैं...

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  2. धन्यवाद महेश्वरी जी ..आपका प्रोत्साहन मेरी प्रेरणा है !कृपया अभिव्यंजना का लिंक भेजें

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  3. जबकि खुले घूम रहे हैं
    हजारों माओं के पुत्रों के हत्यारे,
    खुल्ले आम इसी धरती पर ?..
    क्यूँ अश्वत्थामा ही भटक रहा है पहाड़ों पहाड़ों
    फफोलों और मवाद से भरे ज़ख्मों को ढोते
    इस पीढ़ी के दृश्यों में

    सटीक और सार्थक चिंतन ... सोचने पर विवश करती रचना ..

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  4. सोचने को विवश करती एक सार्थक अभिव्यक्ति।

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  5. अच्छी चोट है ...सुंदर..गंभीर

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