25 जून 2010

औलाद

छगन लाल उर्फ़ गन्नू गाँव के माध्यम दर्जे के किसान थे!तीन बच्चे बड़ा रमेश मझला महेश और चोटी बेटी लक्ष्मी !महेश और लक्ष्मी पढने मे बचपन से ही काफी तेज पर मंझला बेटा महेश मंद बुद्धि रहा!बड़े बेटे और लक्ष्मी ने जब आठवी कक्षा में राज्य भर मे टॉप किया तो गाँव भर का नाम ऊँचा हो गया!लड्डू बंटे! अखबार मे छगनलाल और पत्नी सोमा देवी की तस्वीर भी छपी!तीन चार दिनों तक घर मे आने जाने वालों का ताँता लगा रहा!गन्नू और सोमा देवी सातवें आसमान पर!फिर दोनों बच्चे सरकारी छात्रवृत्ति पर पढ ने शहर के नामी स्कूल मे दाखिल हो गए !गन्नू की इज्जत गाँव भर मे अचानक बढ़ गयी!महेश बहुत भोला और अनपढ़ रह गया था अतः उसे पिता के साथ खेती मे हाथ बंटाना पड़ता था!गाँव की ही एक गरीब घर की लड़की से उसका ब्याह कर दिया गया!! छुट्टियों मे बड़ा बेटा रमेश और बेटी लक्ष्मी होस्टल से घर आते तो उनका खूब सत्कार होता!माँ सोमादेवी होस्टल वापस जाते वक़्त दोनों के साथ घर के घी के लड्डू गुझिया आचार वगेरह बांध देती !
समय बीतता गया!बेटी डॉक्टर और बेटा इंजीनिअर बन गया!फिर से गाँव मे खुशियाँ मनाई गईं!बेटी जब डाक्टर बनकर पहली बार गाँव ई तो गाँव के लोगों और सरपंचजी ने गाँव मे अस्पताल खोलने की इच्छा जताई तब उसने कहा की वो शहर के ही एक डॉक्टर से शादी कर रही है वहीं रहेगी और चली गयी!बड़े बेटे को छगन ने साफ़ हिदायत दे दी थी की यदि तुमने भी अपनी पसंद की लडकी से ब्याह किया तो बिटिया की तरह तुम्हारे लिए भी इस घर के दरवज्जे सदा के लिए बंद हो जायेंगे और जब बड़े बेटे रमेश ने भी ने शहर मे अपने लिए लडकी पसंद करली और पिता को सूचित किया व् समझाने की कोशिश की तो उन्होंने कहा की आज से कभी मुह मती दिखाना हम डोकर डोकरी को !पिता छगनलाल ने साफ़ कर दिया की अब उनका बेटा सिर्फ महेश है वो उसी के साथ रहेंगे!दिन बीतते गए...छगनलाल के सपने ध्वस्त हो गए थे तनाव बर्दाश्त न कर सके और खटिया पकड़ ली!किसानी भी मद्दी होने लगी!महेश के भी दो बच्चे हो गए परिवार चलना मुश्किल हो गया!खटिया पर पड़े पड़े छगनलाल बेटे रमेश को खूब भला बुरा कहते और दुखी होते रहते !घर बाहर के लोग खूब समझाने की नाकाम कोशिश करते!माँ सोमा भी सूखके कांटा हो गई!तभी सरपंचजी ने पंचायत बुलाई और कहा की शहर के कुछ बिल्डर गाँव की जमीन खरीदना चाहते हैं जो लोग बेचना चाहें बेच दें!ज्यादातर लोगों ने मना कर दिया!पहले तो छगना ने भी न कर दी पर घर की हालत देखकर जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा बचाकर बाकी का बड़ा हिस्सा बेच दिया!सोमा खूब रोई बोली""ऐसे व्बाप दादन की जायदाद कोई बेचता है क्या""पर छगन ने एक ने सुनी!बहू लीला ने भी पूछ बैठी दद्दा अब एक कमरा मे कैसे रहेंगे सब लोग?सब तो बेच दियो""तो उदास होकर छगना ने कहा ''अरे पर ज़िंदा रहने के लिए भी तो पैसा चाहिए"एक छोटी मोटी दुकान डाल देंगे परचून की हम दोनों आदमी तो है ही कितने दिन के''बहु चुप हो गई
युद्ध स्तर पर काम शुरू हो गया.महीने भर मे फ्लैट तनने लगे!छगन अपने आँगन की झोलदार खटिया पे पड़ा पड़ा बिल्डिंग बनती देखता रहता...बिकुल उदास और खीझ से भरा!छह आठ महीने मे चार मंजिला ईमारत बनकर तैयार हो गई!वो उदघाटन का दिन था!बड़ी बड़ी करों की लम्बी कतारें लगी हुई थी!पुरी बिल्डिंग लाइटों और पन्नियों से सजाई गई थी!नियत समय पर एक बड़ी कार आकर रुकी बिल्डिंग के आगे !लोगों ने उन्हें फूलों का गुलदस्ता दिया!पति पत्नी को घेरके सब खड़े हो गए.!पंडित ने मंत्रोच्चार शुरू कर दिए!अचानक आगंतुक पति पत्नी छगन लाल के घर के सामने जाकर रुक गए!कुंडी खटखटाई...महेश बाहर निकला!जब तक वो कुछ पूछता आगंतुक घर के अन्दर चले गए पत्नी सहित!दुर्बल कायी छगनलाल घबराकर खटिया पर बैठ गए!घर लोगों से भरने लगा!आगंतुक के बॉडी गार्ड उनको बाहर ठेलने का असफल प्रयास करते रहे !आगंतुक ने काला चश्मा उतार कर गीली ऑंखें रुमाल से पोंछते कहा दद्दा उठो ...अपने घर चलो !

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