19 मई 2013

जैसे उडी जहाज को पंछी ...


कुछ देर वो लोग उस आलीशान होटल के कमरे में अंगरेजी में बातें करते रहे और बातें करते हुए ही कमरे से जुड़े शानदार छज्जे में जा खड़े हुए |मै अपने चारों और विस्फरित नेत्रों से देख रहा था ‘’क्या ये कमरा भी इसी प्रथ्वी का कोई हिस्सा होगा ?’’मैंने अपने अनदेखे सपनों की तरफ एक प्रश्न उछाला (जो लौटकर फिर मेरे जेहन में आ गिरा )|अद्भुत अभूतपूर्व द्रश्य क्रमशः प्रकट हो रहे थे उसी क्रम में अब एक होटल कर्मचारी जिसकी सफ़ेद चमचमाती वर्दी मेरे मैले कुचैले कपड़ों से कई गुना व्यवस्थित और साफ़ सुथरी थी मेरे सामने कुछ इस्त्री किये तहशुदा कपडे लेकर खड़ा था बिना कुछ बोले बुत की तरह |मै मन ही मन खुद को अब तक इतना असभ्य और गया गुजरा मान चुका था कि अब उसकी खाली नज़रें और सभी प्रशन मेरे सामने निरीह हाथ बांधे खड़े थे |तब मुझे पहली बार ये महसूस हुआ कि जिस जगह पर मै लाया गया हूँ वहां शब्द सुविधाओं से कम पेश किये जाते हैं |(उपन्यास अंश) 

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