देर रात तक मैं
स्म्रतियों की सीढ़ी उतरती
रही
अतीत के तहखाने में पहुंचकर
अँधेरे आलों में से उतारे
उम्र के कुछ धूल धूसरित साल
खोलकर उनकी तहों को सूंघा,
धूल को झाड़ा
आँखों से लगाया उन्हें
मलालों के गीले हिस्सों पर
फिराईं अपनी उंगलियाँ
कोने में रखी बुझी मोमबत्ती
को
जलाया फिर से
तमाम द्रश्य आँखें मींडते
हुए उठ बैठे
मुझे मेरे घर पहुंचा
सीढियां फिर उतर गई थी अपने
तहखानों में
तीखी रोशनी की चकाचौंध गाढे
अंधेरों से ज्यादा गहरी थी अब
ख़ूबसूरत केंडल स्टेंड पर रखी
मोमबती
बहुत उदास थी
बीच बीच में आना जाना,
जवाब देंहटाएंआँख मीच के सब भरमाना।