नोबेल पुरूस्कार तमाम आरोपों विवादों के बावजूद आज भी विश्व के सर्वोपरि सम्मानीय
पुरुस्कार हैं |नोबेल पुरुस्कार प्राप्त अनेक विजेताओं का बचपन और किन्ही किन्ही
का तो पूरा जीवन ही कष्टों व् संघर्षों में बीता ,इनमे से कुछ अपनी पारिवारिक प्रष्ठभूमि
के कारण संघर्षरत रहे और कुछ तत्कालीन सामाजिक अर्तिक राजनैतिक विसंगतियों की वजह
से इनमे से इम्रे कर्तेज़,गोर्की,मोपांसा आदि प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध की भयंकर
त्रासदी से होकर गुजरे |और जब उसकी असहनीयता और दुर्दशा ने उन्हें विचलित कर दिया
यही विचलन उनके उपन्यास कहानियों कविताओं आदि में दरपेश/प्रकट हुआ |साहित्य की
अनेक विधाएं ,विचारधाराएँ ,सोच ,विषय अपनी उत्क्रश्तता के शिखर पर सिर्फ एक ही
प्रयोजन के फलस्वरूप पहुँचती हैं वो है सम्पूर्ण मानव जाति से सरोकार और संभावनाएं
न की अपने समाज अपने देश और अपनी समस्याओं गुण दोषों का प्रकटीकरण रुदन या चिंता (कालजयी
साहित्य इसका साक्षी है )|इनमे से कुछ साहित्यकारों का जीवन चरित सुनकर तो आश्चर्य
होता है जैसे १९७४ के नोबेल पुरूस्कार विजेता स्वीडिश कवी हैरी मार्टिनसन जिनकी
माता अपने पति का देहांत होने के बाद अपने छः बच्चों को बेसहारा छोड़कर अमेरिका चली
गईं एउर हैरी का बचपन अनाथालयों में गुजरा वहीं १९९९ के विजेता जर्मन उपन्यासकार
गुंथर ग्रास भी महायुद्ध की घटनाओं के साक्षी रहे उन्होंने अपने कई उपन्यासों में
इन्ही त्रासदियों को विषय बनाया |उनका उपन्यास ‘’कैट एंड माउस डॉग ईयर्स आदि हैं |‘’,डॉग
इयर्स,तो बिलकुल अनोखा ही उपन्यास है जिसमे कोई एक केन्द्रीय पात्र न होकर सिर्फ
आवाजें हैं सपने हैं लेकिन सबसे अधिक प्रसिद्धि उन्हें अपने उपन्यास ‘’दि तिन
ड्रम’’ के लिए मिली इसे जर्मनी में एक नया युग आरम्भ करने वाला उपन्यास कहा गया
|इसके अलावा पुर्तगाली विजेता कवी/लेखक जोस सारामागो,रूसी साहित्यकार मिखाइल
शोलोखोव (१९६५)|यद्यपि संघर्षों से गुजरना और उसी पर रचना करना किसी साहित्यिक
सच्चाई या विशेषता /उत्क्रश्तता को नहीं सिद्ध करता |जैसे फ्रांस के रोजे मारते
दुगार,चर्चिल आदि लेखक संपन्न परिवारों से वास्ता रखते थे लेकिन इन सभी में जो एक
समानता है वो यही है की इनके सरोकार मानवता के पक्षधर रहे |(क्रमशः)
वंदना