चिंतन
कवितायेँ और कहानियां
3 जून 2013
कुछ लोग ....
जैसे दौडती हैं सडकें चमकती हुई चौड़ी और लम्बी
दमकते हुए चेहरों,कपड़ों और बरक्कत के आगे आगे
सलाम ठोकती हुई
क्या ऐसी उखड़ी ऊबड़ खाबड़ खड्डों से भरी
सडकों के लायक ही होते हैं कुछ लोग?
1 टिप्पणी:
प्रवीण पाण्डेय
3 जून 2013 को 9:02 pm बजे
जो जिस पर चलना चाहे, पंथी को पंथ वही मिलते हैं,
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जो जिस पर चलना चाहे, पंथी को पंथ वही मिलते हैं,
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