थियेटर बचपन से जुड़ा है मेरे साथ और मेरा
सौभाग्य है कि इस रंगमंचीय यात्रा में कवलम नारायण पणिक्कर .(केरल के फिल्म निर्देशक /नाट्य
निर्देशक/लेखक /संगीत नाटक एकेडेमी पुरूस्कार प्राप्त,मूल
संस्कृत और शेक्सपियर के नाटकों से विशेष प्रसिद्धि ) ),सुप्रसिद्ध भरतनाट्यम
न्रात्यान्गना भारती शिवाजी और बी एम् शाह (भूतपूर्व निर्देशक नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा
/फिल्म कलाकार ),बंसी कौल जैसे देश के ख्यातिनाम निर्देशकों के निर्देशन में अभिनय
और कार्यशालाओं को अटेंड करने का मौक़ा मिला | एक से विषय,एक ही दिशा में जाना बात
करना मुझे कुछ उबाऊ लगता रहा शायद इसी फितरत ने मुझे प्रयोगधर्मी बनाया |कोशिश
करती हूँ की संगीत में नई कम्पोसीशंस ,थियेटर में नए प्रयोग और लेखन में नए विषय
और शिल्प चुनूं और उसी पर काम करूँ |(खेमेबाजी से दूर एक छोटे शहर में रहकर कितनी
सफल हो पाती हूँ पता नहीं ... )पहल के किसी अंक (स्वीकृत कहानी )''डायरी शैली'',नया ज्ञानोदय की जुलाई २०१३ के प्रकाशित कहानी और
सितम्बर 2013 में' 'हंस' में प्रकाशित होने वाली कहानी जो सिर्फ नरेटर के द्वारा कही गई है (एक पात्रीय कहानी )इसी प्रयोग के हिस्से हैं |मैंने बचपन में वसंत पोद्दार और
सुमन धर्माधिकारी के एकल अभिनय वाले नाटक देखे हैं जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया
था |और अब एक एकल नाटक लिख रही हूँ अपने लिए स्वयं अभिनय करने के लिए ..एकल अभिनय...|''हंस'' की कहानी इसी ''एक पात्रीय''प्रयोग का एक हिस्सा है .|ये कहानी लम्बी कहानी है और कश्मीर पर है लेकिन
कश्मीर पर लिखी गई अन्य कहानियों से अलग |पढियेगा तो महसूस कीजिएगा ...इंशाल्लाह ..प्रयोग सफल होगा |
वंदना
पढ़ते हैं..
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