4 दिसंबर 2013

जीवन  
 धरती की हथेली पर आसक्ति की लकीरें
जीवन का घोषणा पत्र हैं
नियति एक बड़ी जुआरी है और प्रकृति के क़ानून खुले   
आत्मा के ब्रम्ह कमल में
पीड़ा 
खिलती है हर खुशी के छोर पर
प्रकृति गुनगुनाती है परिणिति के गीत  
घटनाएँ अंधी है और दिशाएं बहरी


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें