14 अप्रैल 2016

बंबई न जाने कब चुपचाप एक दिन मुम्बई हो गयी और कलकत्ता कोलकाता पता ही नहीं चला लेकिन ....|एक तरफ जातिवादिता को गरियाया जाता है तो दूसरी और गुर्जर, जाट पटेल जैसे संपन्न, दलित कहलाने को व्याकुल लोग आरक्षण की मांग करते हैं |लाखों की संपत्ति फूंक दी जाती है , लोग मरते हैं  ,बलात्कार होते हैं ... | देश को आजाद हुए , उसका अपना संविधान बने ,उसे लोकतंत्र का दर्जा मिले सात दशक होने को हैं लेकिन आज़ादी की जो अभिव्यक्ति अब देखने को मिल रही है वो अभूतपूर्व है |