25 जून 2012

मैंने कहा


उसने कहा बीज...मै पौधा हो गई
उसने कहा चिड़िया ....मै पंख हो गई
उसने कहा शाख मै कली हो गई ..
उसने कहा फूल मै सुगंध हो गई
उसने कहा सुगंध ...मै हवा हो गई
उसने कहा हवा मै आकाश हो गई
ज़िंदगी कुछ भी नहीं ,मजाक के सिवा
मैंने कहा 

24 जून 2012

प्यास


गर्म भपाती धरती ने जब
तिलमिलाकर 
देखा होगा कोई पहाड़
उठाई होगी सीली हथेली
प्रार्थना में 
सूरज की तरफ
एक चिड़िया उड़ने लगी होगी सहसा
आकाश की चोहद्दी में
बैठ गई होगी धुरी की
सबसे दुरूह ऊँचाइ पर |
 उड़ानों को
हवा ने जिस की बुना होगा
रेशमी उजालों से   
समय के केनवास पर
तिनके को रात की स्याही में डुबा
खींची होंगी कुछ लकीरें 
नन्ही चोंच से
चिड़िया ने,
हरहरा बह निकली होगी कोई नदी
डुबोई होगी जिसमे चिड़िया ने
अपनी प्यास |

21 जून 2012

आसमान की तपन धरती पर झर रही थी |मैंने ताला खोला |इस बार वो नहीं थीं ,पर उसकी उपस्थिति घर भर में घूम रही थी ,प्रतीक्षा करती हुई |सन्नाटों के कुहासों पर उसकी आवाजें,खिलखिलाहटें रह रहकर गिर रही थी हजारों मूक लोगों की संगठित आवाजों की तरह ....फिर घिर गया था मै एक भंवर में |इस दफे पहले से कुछ ज्यादा ,क्यूँ कि आवाजों के इस बवंडर में कुछ सूखे पत्ते उसकी स्मृति के भी थे ........(एक लिखी जा रही कहानी का अंश ) 

17 जून 2012


''जानकी पुल ''में प्रकाशित कवितायेँ 


http://www.jankipul.com/2012/06/blog-post_17.html?.

बड़ी होती लड़की   
 एक लड़की /यही कोई बारह एक बरस की
जैसे होती हैं लड़कियां,
जैसे होनी चाहिए
 बिन बाप ,और घरों में काम करने वाली
अपढ़ बेवा स्त्री की इकलौती लड़की|
दिन भर गुनगुनाती,
.गानों के पीछे माँ के उलाहने भी खाती 
पर गाने गाती/गाती रहती!
फ़िल्मी गाने 
कभी जोर से ,कभी ऊंऊं ऊं ऊं .
दुपट्टा उंगली में लपेटते....
आँखों में सुरमा लगाते...
गली में लंगडी खेलते....
पटे पे रोटी बेलते....  
..और कभी झुग्गी की खिडकी
 ,जिस पर नीले आसमान का पर्दा था ,के सामने खड़ी हो
 उस दरके हुए आईने के सामने नाचती भी 
जिस के दो हिस्सों में उसके छोटे से चेहरे को समाने के लिए
 काफी मशक्कत भी करनी पड़ती 
कभी २ आईने में ,नीले आसमान में उड़ते
 सफेद पक्षी भी दिख जाते 
उन्हें छूने की कोशिश करते 
वो खिलखिला देती 
आईना एक हाथ में पकड़ नाचते हुए खुद को
पूरा देखने की कोशिश करती
,पर वो भी ‘’कई’’सपनों जैसे खंड खंड में ही देख पाती 
खुद को ,
ये तो अपनी उम्र के दो साल पहले ही करने लगी थी
यही आईने में खुद को निहारना 
पर अब आईना छोटा हो रहा था ,और सपने बड़े
 आईना हो चला था
थोडा मनचला भी
आँखों और आईने में कुछ चुहलबाजी होती 
,जिस पर दिल ओठों को कुहनी मारता
और ओठ पर बसंत खिल जाते 
लड़की बड़ी हो रही थी
अमलतास होती ...
        (२)
सपनों को चोटी में गूंथे ,
माथे की खिलती बिंदिया के साथ 
लड़की बढ़ रही थी 
 दुनिया और बड़ी ...
माँ का दिल सिकुड़ा जा रहा था 
माँ ने देखा झुग्गी की ऑंखें उगती/  ...कान भी 
सो,फ्रोक की जगह शलवार कुरता और बदन पे दुपट्टा आ गया 
 बेटी बड़ी हो रही थी...गुनगुनाती हुई..
 ...झुग्गी के आसपास मौलश्री उग आई थी
 रात में रजनीगन्धा महकती
पर अम्मा को दिखाई नहीं  देती.
..ना सुंघाई बस बीच में बिटिया आ जाती !
महक उस तरफ छूट जाती
लड़की बड़ी हो रही थी महकती
वसंत –गीत गाती  
      (३)
सड़क पर चलते
मनचला कोई गाना फेंकता नज़रों के साथ
वो गाना लपक लेती जो घर तक लौटते फुदकता रहता उसके होठों पर
वो तितली बनी मंडराया करती
गाने के फूलों पर  
मुस्कुराती ...गुनगुनाती...प्रेम गीत  
लड़की बड़ी हो रही थी
        (४)

 तितर बितर झुग्गियों के धुंधले खेत के बीच
बिजूका से खड़े हेंड पम्प पर जब लड़की  
अपनी मतवाली चाल से गुनगुनाती पानी लेने जाती
तो मोहल्ले के मनचले छेड़ते ....
 ,कभी रास्ता रोक लेते .
आँख नीची किये मुस्कुराती आ जाती!
पर अम्मा की छाती पर सांप लोटते
!किस-किससे लड़े अम्मा ..
.ज्यादा बोले तो सांस चढ जाती है निगोडी,
लड़की गुनगुनाती
प्रणय गीत
 (५)
इस साल बारिश ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी
दोनों माँ बेटी रात भर गीली झुग्गी में सूखी जगह ढूंढती
और सवेरा कर देतीं !.
...झुग्गी की कच्ची मटमैली दीवारों पर नमी
रोज अपने चिन्ह दबा जाती जो
अम्मा के सोते बखत छत पर टंगी आँखों से होते
त्वचा पर चिपक जाते,दिल में सुइयां सी छिदती
 अब भी गुनगुना रही थी
रात की उनींदी लड़की 
भैरवी ,  
सोये सपनों को जगाती |

        (६)
गुनगुनाहट सीलने लगी ,बारिश के साथ
गुनगुनाहट सूखने लगी धूप के साथ
गुनगुनाहट भीगने लगी आंसुओं के साथ
गुनगुनाहट ढहने लगी सपनों के साथ
कि लड़की अब भी गुनगुना रही थी
बच्ची को लोरी सुनाती
अपने पपडाए होठों और
अधसूखे ज़ख्मों को सहलाते
कि लड़की अब बड़ी हो गई थी |
अपने रुदन को बचाए
..