29 अक्तूबर 2011

First Part of my Singpore Trip...

चान्घी हवाई अड्डे पर उतरने और बाहर आने में कोई खास परेशानी नहीं हुई

सिवाय इसके कि यहाँ माहौल अपने देश से कुछ अलग था हवाई अड्डा तो वैसा ही कमोबेश जैसे सब देशों के होते हैं ,टेक्सी स्टेंड भी आम टेक्सी स्टेंड जैसा ही लग रहा था बस फर्क इतना ही था कि वहां एक कतार में खड़ा होना पड़ा लेकिन टेक्सी का आना जाना इतना त्वरित था कि लग भाग पांच मिनिट के भीतर ही हम एक चमचमाती फर्राटेदार टेक्सी में उड़े चले जा रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे कार ज़मीन पर नहीं हवा में उड़ रही है 

साफ़ सुथरी चमचमाती लम्बी सड़कें ,रोशनी में नहाई हुई ....आसपास एक सी पुती गगन चुंबी इमारतें ,सड़कों के आसपास सुन्दर हरे भरे पेड़ , ,हर रोज़ होने वाली बारिश से खिले गाढे हरे पत्तों भरी हरियाली, कुछ २ दूरी पर लगी अनुशासन बद्ध जलती बुझती लाल हरी बत्तियां,उनके इशारे पर दौड़ते वाहन और हरी बत्ती जलते ही ,,ज़ेब्रा क्रोसिंग'' पर तेज़ चलते कदम ... दौनों के बीच के तालमेल को देखते लम्बे दरख़्त,ऊंची इमारतें और लम्बी बेजाम सड़कें
यहाँ ज़िन्दगी और मेट्रो में कोई ख़ास फर्क नहीं ....नियमबढ ,समय,भागती हुई,सुन्दर सजी धजी ,
यहाँ जीवन के दो ही अर्थ हैं ...एक भरपूर जोश,उत्साह,ऊर्जा सपनों से भरा और दूसरा,जी चुकी सभ्रान्तता और पौष ज़िन्दगी से ऊबा हुआ एक थका हुआ सच ,जिसमे कुछ हिस्सा उम्र और घटती ऊर्जा में भागती ज़िन्दगी के साथ ताल से ताल न मिला पाने के क्षोभ से भरा हुआ
सूखी और झुर्रीदार त्वचा से झांकता पलायन और किसी ''अबूझ'' का इंतज़ार जैसे ...
कच्ची उम्र के सपने हाथों में हाथ डाले परियों के देश में विचरते रंग बिरंगे सपनों से लादे फदे मेट्रो और अन्य स्थलों पर एक दुसरे को हाथ पकडे ,वहीं थके क़दमों से धीरे धीरे चलते वृद्ध दंपत्ति एक दुसरे को थामे , उदास फीकी आँखों में झांकते ,शायद इसीलिए मेट्रो में भी हर सात में से दो सीटें वृद्धों और अपंगों के लिए सुरक्षित हैं पर ये ज़रूर है कि इस नियम का भरी भीड़ में भी पालन किया जाता है रात और दिन ,कि तरह हर चीज़ के दो पक्ष होते हैं ...कुछ अछा कुछ बुरा
यहाँ अच्छाई भी ''प्रायोजित सी लगती है क्यूँ कि जीतनी भी ''अच्छी कहने या मानने योग्य घटनाएँ नियम या मनोवृत्तियाँ हैं ,वो सब सत्ता के अधीन हैं हाँ ये होसकता है कि,धीरे धीरे पीढियां इस थोपी गई अच्छाई की अभ्यस्त हो गई हों लेकिन जो भी है एक मनुष्य होने के नाते ये सुनियोजित व्यवस्था एक आश्वस्ति तो प्रदान करती ही है ,,यहाँ के अँधेरे भी दिन की रौशनी की तरह आश्वस्त और चौकस हैं यही वजह है कि देर रात तक मॉलों सड़कों और मेट्रो की आवाजाही बेझिझक चलती रहती है
यहाँ मॉल संस्कृति ही है, जहाँ अस्सी प्रतिशत महिलाएं ही कार्यरत हैं
यहाँ बसें ,ट्राम और मेट्रो तक महिलाएं भी चलाती हैं ये देखकर बहुत सुखद आश्चर्य हुआ
यहाँ म्यूजियम में एशियाई देशों का इतिहास संस्कृति और सभ्यता को दिखाया गया है
बुद्ध को चीनी लोग पूजते हैं गौर तलब है कि यहाँ सबसे ज्यादा चाइनीज़ ही हैं ..
Asian Civilization Museum @ Singapore

बुद्ध के द्रश्यों और इतिहास में ''लाइफ आफ्टर डेथ ''एक दीर्घ चित्रों और साहित्य से भरी प्रदर्शनी के रूप में दिखाई गई है,जो अद्भत है
इस पूरे संग्रहालय में बहुत व्यवस्थित और रोचक द्रशों में बहुत ही सधे और कलात्मक लाईटिंग का भी बहुत हाथ है ,जैसे ''लाईफ आफ्टर डेथ ''के द्रश्यों को तेज़-कम नीली रोशनी से दिखाया गया है,जबकि मलेशिया आदि देशों के युद्ध के द्रशों को गाढे लाल सिंदूरी रौशनी से दिखाया गया है
इस संग्रहालय में अनेक एशियाई देशों की जानकारी हासिल होने के अलावा जो महत्व पूर्ण चीज़ दिखी वो ये कि विद्ध्यार्थियों को देश विदेश के इतिहास की जानकारी गंभीरता से दी जाती है जिसकी कक्षाएं यहाँ संग्रहालय में लगाई जाती हैं  



इस देश में पैदा होने वाले लड़कों को अठारह वर्ष का होने पर सरकार को सौंपना होता है दो वर्षों के लिए ,यानी आर्मी में भर्ती होना अनिवार्य है,जहाँ उन्हें फायरिंग से लेकर मेट्रो,या ट्रेफिक नियमों तक की ट्रेनिंग दी जाती है
यहाँ विभिन्न संस्कृतियों भिन्न २ वेशभूषा और सम्प्रदायों के लोग रहते हैं ,चाइना टाउन है तो अरब मार्केट भी है,लिटिल इंडिया है तो मुस्तफा भी है ,सेंतोसा बीच है ,सिंगापोरे रिवर है ,मलय गिरजाघर हैं अलग अलग वेशभूषा और संस्कृति होते हुए भी सब कुछ बहुत सहज है शायद इसलिए कि यहाँ ''अनेकता में एकता ''या हम सब एक हैं जैसे नारे नहीं ,ना ही ''हम होंगे कामयाब एक दिन ''जैसे भविष्यत् गीत जहाँ कार्यालयों बेंकों में सब लोग एक साथ काम करते हैं जिनकी अंग्रेजी एक कॉमन भाषा है वहीँ गगन चुंबी और महंगे अपार्टमेट्स में लोग ज्यादातर अपने परिवार के साथ रहना या घूमना फिरना पसंद करते हैं 


आपसी रिश्ते अपने अपने जुबान और धर्मों के लोगों के साथ ही रहते हैं
उल्लेखनीय है कि सिंगापूर एक छोटा ,व्यवस्थित सुनियोजित एवं व्यवस्थित देश है ,यहाँ के समस्त क्रिया कलापों की डोर यहाँ की सरकार के हाथों में है ,यहाँ सब्जी  दूध तक आस पास के देशों मलेशिया वगेरह से आते हैं
यहाँ की अर्थ व्यवस्था का बहुत बड़ा हिस्सा पर्यटन से प्राप्त होता है ,जिसे अद्भुत क्रियान्वित किया गया है
पर्यटकों को अन्य सुविधाओं के अतिरिक्त एक ''सिटी टूर''कि व्यवस्था भी है जो डबल डेकर खुली छत वाली एए सी बस पूरे सिंगापोर की यात्रा कराती है ,उसमे बाकायदा एक कोमेंट्री भी चलती है जो दिखये गए स्थान के इतिहास और विशेषताओं को बताती चलती है
इस यात्रा के दौरान आसपास की सुव्यवस्थित शांत और बेहद खुबसूरत चकित कर देने वाले द्रशों को देखकर किसी स्वप्न लोक में विचरने सा अहसास होता है ,कई द्रश्य देखकर ऑंखें खुद पर यकीन नहीं कर पातीं कि ऐसा भी होता होगा
सिंगापूर का चिन्ह शेर है इसके पीछे भी एक कथा है जो,.... एनीमितेद वीडियो द्वारा दिखाई जाती है
''एक देश का राजकुमार शिकार में पिछड़ कर एक सुनसान भयानक जंगल में पहुँच गया
उसके साथ दो साथी भी थे ,बेहद डरावने वातावरण में अचानक राजकुमार को बहुत दूरी पर सुन्दर प्राकृतिक द्रश्य दिखे जो जंगल का ही एक हिस्सा था
वो बहुत निडर और बहादुर था..तमाम अवरोधों के बावजूद वो उस स्थान तक पहुँच गया जहाँ सबसे पहले एक शेर से उसका सामना हुआ ,पहले वो शेर उस पर झपटा लेकिन जब उसने निर्भीकता से शेर की आँखों में ऑंखें डाल कर देखा तो शेर वहां से चला गया
माना जाता है कि शेर ने ही राजकुमार को यहाँ शहर बसने का बोध कराया था
एक अद्भुत स्थान है यहाँ जिसे अंडर वाटर वर्ल्ड''(पानी के नीचे की दुनियां )कहा जाता है
एक शीशे के पारदर्शक सुरंग में से पर्यटक गुज़रते हैं ,जिनके चारों और समुद्र के भीतर का वातावरण निर्मित किया गया है
तेज़ रौशनी और पानी के बीच से गुज़रना रोमांच और अद्भत अनुभूति होती है
समुद्र के भीतर का जीवन,विचित्र जीव,ऑक्टोपस,तमाम तरह की मछलियाँ ,केंकड़े,(दुनियां के सबसे बड़े )आदि देखना सचमुच एक अभूतपूर्व और विचित्र अनुभव होते हैं
एक जू है यहाँ जो विशेषतः छोटे बच्चों के लिए बहुत आकर्षक रूप से बनाया गया है
इसमें विभिन्न देशों के पशु पक्षी रहते हैं खास बात ये है कि ये सिर्फ रात में सात से ग्यारह तक ही खुलता है इसे ''नाईट सफारी''कहा जाता है
इसमें एक ट्राम का टिकिट लेना होता है वो छोटी और खुली हुई ट्राम जिसमे एक बहुत सुन्दर कॉमेंट्री चलती रहती है
ट्राम की विशेषता है कि उसमे ना के बराबर ध्वनि होती है बस घने अन्धकार और बीहड़ जंगल के बीच से ये गुज़रती है जिस स्पोट् पर हल्की रोशनी है वहां इसकी गति धीमी हो जाती है और सामने कोई जानवर घूमता खाता पीता या सोता दिखाई देता है कोमेंट्री में उसके बारे में जैसे ये किस देश का है नाम आदतें वगेरह बताई जाती हैं और ट्राम आगे बढ़ जाती है
आश्चर्य की बात ये है कि बब्बर शेर ,दरियाई घोड़े,हाथी,चीते,भालू आदि जैसे हिंसक पशुओं को भी बहुत पास से देख पते हैं ,दर्शकों और पशुओं के मध्य एक खाई और झाड झंकाद से अक्सर होते हैं
ट्राम यात्रा को बीच में रोक पर्यटक उतर भी सकते हैं जिनके लिए पैदल मार्ग बनाये हुए हैं जहाँ अक्सर वो चित्र और अधिक निकट से देख पते हैं लेकिन पैदल यात्रियों के लिए खतरनाक पशुओं तक पहुँचने का कोई मार्ग नहीं वो सिर्फ अहानिकर पशुओं को ही देख पते हैं
जू और नाईट सफारी के अतिरिक्त एक //बर्ल्ड पार्क भी हैं जहाँ दुनियां भर की चिड़ियाँ रहती हैं




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25 अक्तूबर 2011

katranen..


-- बहुत पहले लगता था,कि जहाँ देखो लोग या तो बस बोले जा रहे हैं बेरुके ,या फिर भागे जा रहे हैं ,क्यूँ ?कहाँ ?पता  नहीं ...शायद ये ठीक से वो भी नहीं जानते |क्या वो सचमुच वहीँ जा रहे होते थे  जहाँ वो जाना चाहते थे  ?क्या मस्तिष्क, देह और परिस्थितियों का अनुपालन उतनी ही शिद्दत उतनी ही मुस्तैदी से करता  है,जितनी हम उससे अपेक्षा करते हैं ? शायद नहीं ..|.दुनियां की तमाम विसंगतियां भावों का सर्जन ....देह,मन और मस्तिष्क की इन्ही बेताल बेमेल लयों  से फूटता  हैं| स्म्रतियां बनाम अतीत मनुष्य की चेतना  से गीली मिट्टी की तरह चिपके रहते हैं ताजिंदगी  |,हम जगहों से भाग सकते हैं ,प्रकृति के आगोश में छिप सकते हैं,ज़िन्दगी के जिस्म में गहरे छिपी खुशियों को कुरेद कर कुछ क्षण आत्म मुग्ध हो सकते हैं , लेकिन क्या अपने साये से दूर हो सकते हैं?दुनिया के तमाम दर्शनीय स्थानों,पर्यटन स्थलों , कलाओं,साहित्य ,यायावरी,आदि का अस्तित्व इसी नियति  का  कंपनसेशन ही है|  हमारे ऋषि मुनियों ने मौन को जिसका आधुनिक तर्जुमा  मेडिटेशन है को बहुत महत्त्व दिया है...लेकिन क्या मौन ,हमारे अंतर्मन के झंझावातों से मुक्ति का उपाय हो सकता है?यदि ऐसा होता तो आज मानसिक व्याधियां,अपराध,जुगुप्साएं समाप्त  नहीं हो गई होतीं धरती से?पच्चीस फी सदी चैनलों को योगा ,उपदेशों,प्रवचनों,की कक्षाओं की ज़रूरत होती?|मैं इन दिनों एशिया के एक बेहद खुबसूरत और संपन्न देश में हूं ,जहाँ ज़िन्दगी  के सिर्फ दो ही  अर्थ हैं ...एक फुल मौज मस्ती,जिसकी उम्र सीमा भी है,और दुसरे ,उदास  चेहरों  पर तिरस्कार और अवसाद की  झुर्रियों  से  लिपिबद्ध  गहन अवसाद और विरक्ति की मौन भाषा  |आज दिवाली है...ढेरों सन्देश बिखरे हैं शुभकामनाओं के ..अच्छा लग रहा है ...ये छोटी छोटी खुशियाँ ही तो हैं जो ज़िन्दगी को जिंदा रखे हुए हैं !....चलिए हम साथ बंटते हैं ये खुशियाँ ,,,,दिवाली मुबारक आप सभी दोस्तों को ...:)

18 अक्तूबर 2011

In Singapore

In dinon Singapore me hun .bahut achha aur alag anubhav.yahan ke logon me koi hadbadahat koi excitment nahin dikhta .chehre par ek shanti aur sfurti hai.metro yatayat ka sabse bada maadhyam hai.ek house wife se lekar working men-women, students,others sabhee logon ke chehre par ek santusht muskurahat khili rahti hai.lekin ek baat azeeb hai yahan .khali vaqt me chahe Metro,ho  park ya Hotel koi bhi vyakti khali nahin baithta sabhi ke hathon me Smart phones rahte hain jin  par games,chat ityadi karte rahte hain :)

16 अक्तूबर 2011

जीवन



बोझिल आँखों में जागती रात सा ,
 बीतता रहता है कुछ ,रीतता सा
 हर रोज ....!
जैसे आदमी हर सुबह
खोल लेता है अपना अतीत अखबार की तरह
अपने सामने या
भविष्य की ज़मीन पर
बिखेर लेता है अनुमानों की चंद लकीरें  
शेष सांसों के इर्द गिर्द
 उलट-पुलट  
गढता उन्हें किन्हीं आड़ी-टेडी लकीरों ,कोण
 तिकोनों ,वृत्त ,कुछ चौकोर मे
रचता है कुछ आकृतियाँ
और विशवास को ओढ़  कर  
सो जाता है एक गहरी नींद
उस लंबी दोपहरी में ..

12 अक्तूबर 2011

प्यार


कैसे बताऊँ तुम्हे,
कि प्यार प्यार होता है
व्यापार नहीं |
कोई शर्त,कोई गारंटी, ‘’बिका माल वापस नहीं ‘’टाईप,
बड़े ज़हाजों में लदकर भी नहीं आता ये ,
बंदरगाहों पर विशाल खोखों में उठाकर 
पटका भी नहीं जाता इसे 
कोई बहीखाता भी नहीं होता इसका
फायदे नुक्सान के जोड़ तोड़ का
इसके लिए गोष्ठियां भी नहीं होतीं
जैसे होती हैं बुद्धिजीवियों के खेमों में,
प्यार उतना भी ज़रुरी नहीं,
कि धरने दीये जाएँ इसके लिए  ,जैसे
दिए जाते हैं किसी न्याय को पाने ,  
आँखें तक नहीं होतीं इसकी तो देखने को,
पहले ज़रूरत नहीं थी उनकी 
और अब मोहलत....
आँखें तो सिर्फ नफरत की होती हैं
जिनका धर्म सिर्फ तरेरना है ,
ऑंखें सिर्फ खुद को फेर लिए जाने के लिए होती हैं
इतराती हुई कि शुक्र है वो पीठ पर नहीं 
जो देख सकें आँखों का पानी, 
मोबाईल,कंप्यूटर ,लेंड लाइन के बाज़ार में, 
आज भी बचाए  रखी है एक ही  स्त्री ने 
अपने भीतर माँ ,बहन ,बीवी ,प्रेमिका,
और एक निखालिस औरत की आत्मा
 प्रेम में होती है
सिर्फ एक ऊष्मा जो बहती है भीतर ही भीतर
बाहर को स्थगित करती हुई
तुमने कहा ,अब प्यार नहीं .क्यूंकि
तुमने की मेरे क्रोध की मीमांसा...
मेरी मनमानी की व्याख्या...
मेरे वक्त में सेंध लगाईं 
 मेरे वुजूद पे हक जमाया
और ना जाने क्या....
तुम कह रहे थे जब ये सब
अतीत  लगभग बहरा हो चुका  था
तुम जब निचोड़ कर सूखने डाल रहे थे किसी के सपने   
प्यार प्रथ्वी के किसी अँधेरे से एक कोने में सिमट
मुस्कुरा रहा था /शायद तुम पर ?
शायद मुझ पर ?या हो सकता है खुद पर ?
अविश्वास सा कुछ पहना था उसने
सोच रहा था मन ही मन ,
कहीं नीले बादल यकायक सिंदूरी होने लगते,
कोई कली चुपचाप मुस्कुराती चटखने लगती,  
कोई ओस की बूंद हौले से पत्ते पर गिरती,
इतना ही मौन होना था निखालिस प्यार
जहाँ तर्क को थक थकाकर हांफता हुआ ढह जाना था .... 


6 अक्तूबर 2011

रेत का घर

किसी कहानी की पटकथा के, 
उबड खाबड रास्तों के बीच
कहीं अपनी पगडंडी तलाशने जैसा  ,
ख्वाब लगता है अब     
पहुँच पाना उस हिमालय तक
जिसकी चोटी पर खड़े हो,
वादा था अपने एकांत से 
मुट्ठी खोल देने का 
सपनों से भरी ,
रंग देना नीले आसमान को तितलियों से,
उड़ा देना हाथों से यादों के कुछ खूबसूरत कबूतर
और हो जाना मुक्त पिंजरों से
समुद्र के बाजू      
गीली रेत का वो ढेर , जिसमे पैर घुसा 
बना आये थे एक घर
नहीं जानते थे तब कि 
हर लौटने की तासीर होती है 
पथरीले पहाड़ों में बदल जाना 
तकलीफ देह होता है नियति की तलहटी से देखना
आस्मां को छेदते हुए उन हौसलों को
एंठी गर्दन को सहलाते
फिर फिर उछाल दिया जाना
आसमान में बार बार ...
डाल से गिरे सेब सा ,सेब की  
गुरुत्वाकर्षण शक्ति को
परखने की कुटिल मंशा लिये | ,
इससे तो बेहतर था 
किसी ऊब की तरह   
बिखर जाना ज़मीन पर  
गीली रेत पर पाँव रखते हुए ....|