30 मई 2013

जिस देश में हूँ इन दिनों
वहां बहुत कुछ है ऐसा
जो मुझे याद दिलाता है
अपने देश की  
मसलन यहाँ हिमालय नहीं है
इसीलिये अन्य जानकारियाँ लेते हुए मैंने
ये पूछने की ज़रूरत नहीं समझी
कि इस देश का कोई दुश्मन है क्या?
गगन चुम्बी इमारतों में खिड़कियाँ हैं
सींखचों से ज्यादा
और अपराध और दुर्घटनाओं के कद
बहुत बौने  
यहाँ आदमी इस कदर व्यस्त है
जीविका के अलावा अपने
स्व को बचाए रखने में कि
  कैलेण्डर में
त्योहारों जयंतियों या दिवसों पर
पेन से नहीं खींचे जाते गोले  
इस देश में किसान आत्महत्या नहीं करते
क्यूंकि करीबी देशों में आदमी   
खेतों से ज्यादा हैं  
खेतों की जगह बना रखे हैं सरकार ने
पर्यटन स्थल और लिखा है बड़े बड़े अक्षरों में
Discover  a world of wonders
स्वास्थ्य भोजन आबो हवा मनोरंजन
इकतरफा सरकार के मुख्य एजेंडों में हैं
 आदमी की जान की कीमत
सर्वाधिक महंगी कारों से भी
ऊंची कर रखी है यहाँ
लिहाजा
हिस्ट्री की किताबों में
महाभारत ,गोधरा ,या गैस कांड जैसा
कोई चेप्टर नहीं
सभ्यता के बड़े पहाड़ नहीं यहाँ
और ना ही  
कोई नदी भाषाओं की  
अलबता गाड़ियों के हॉर्न बजाना
जोगिंग ट्रेक में सायकिल सवारों का घुस जाना
गरीबी या दुखी दर्शाना
यहाँ असभ्यता में गिना जाता है
ट्रेफिक पुलिस अथवा बड़े मॉलों में
पहरा देती झिड़कती घूरती आँखों का
यहाँ बिलकुल चलन नहीं
जान और इज्ज़त की हिफाज़त आदमी की
व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी है
Asia’s largest Bird Paradise से
गर्वोन्मत्त है देश लेकिन  
देश को साफ़ और शांत बनाये रखने की कीमत
चुकानी होती है बगलगीर देशों से आए
कौए,कबूतर ,गौरैया वर्ग के   
‘’आवारा’’ जंगली पक्षियों को  
जो हरियाली से आकर्षित हो
घने पेड़ों में खोजने बसेरा  
भटक आते हैं यहाँ  
देखते ही गोली मारने के आदेश हैं उन्हें
यहाँ स्वयं के मानव होने (मानवता नहीं )के अहसास को
उन्माद की हद तक विलग रखा जाता है
धरती के अन्य जीवों से लेकिन
उन्हीं के वुजूद से कमाई जाती है अपनी साख
पानी से लेकर कारें तक  
आयात किये जाते हैं विदेशों से,पर   
देशवासियों को अपनी आजादी पर उतना ही गर्व है
जितना हमें गंगा ,कुम्भ मेले ,अपने लोकतंत्र और
संस्कृति पर ...
आखिर
आदर्श जीवन की परिभाषा क्या है
और सुख के लिए
क्यूँ ज़रूरी है संवेदनाओं और क्षेत्रफल का
सिकुड़े रहना  ?...(सिंगापुर से )













28 मई 2013

सिंगापुर डायरी


 सिंगापुर एक शांत और बेहद साफ़ सुथरा देश है |यहाँ लोग खाने और घूमने फिरने के शौक़ीन हैं |मैच का क्रेज़ बिलकुल नहीं है लेकिन भारतीय जो यहाँ काफी हैं मैच देखते हैं |यहाँ के लोग हेल्थ कौन्ग्शियास और फुर्तीले हैं |खेलों में फुटबॉल,बेडमिन्टन जैसे खेल के शौक़ीन हैं |मौल या खुले रेस्तरां के निकट प्ले ग्राउंड्स भी हैं जहाँ शाम के वक़्त बच्चे व् युवक खेलते हुए दीखते हैं |देश छोटा है और यहाँ आवागमन का सबसे लोकप्रिय माध्यम मेट्रो ही है |इसके स्टेशन और मार्ग इस तरह बनाये गए हैं की आप कहीं भी किसी इलाके में रहते हों मेट्रो से आपके घर की दूरी वॉकिंग डिस्टेंस पर होगी |मेट्रो के अलावा लोग टेक्सी से चलते हैं जिसका इस्तेमाल पर्यटक ज्यादा करते हैं |कहीं से भी कॉल करो पांच सात मिनिट में टेक्सी आकर खड़ी हो जाती है |यहाँ कार बहुत कम लोग चलाते हैं क्यूँ की वो अन्य देशों की अपेक्षा काफी मंहगी पड़ती है |रोड टेक्स और अधिक भरे हुए रास्तों पर एक्स्ट्रा चार्ज भी देना होता है |ये व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि लोग कार ज्यादा ना खरीद पायें इससे दुर्घटनाओं व् प्रदूषण का खतरा भी कम हो जाता है |यहाँ घर में खाना बनाने व् खाने का प्रचलन कम है लोग बाहर खाना ही पसंद करते हैं इसकी वजह वो नौकरीपेशा लोगों को न सिर्फ काम कम होना बताते हैं बल्कि सस्ता भी होता है ये मानते हैं |जीवन अनुशासित आधुनिक और बनावटी है |यहाँ मलय लोग इंडियंस से भी अधिक हैं इसकी वजह मलेशिया का यहाँ से निकट होना ही है |छोटे बच्चों की हेल्थ का यहाँ विशेष ख्याल रखा जाता है |कल एक विचित्र घटना घटी |दोपहर में जब सडकें वाहनों से भरी हुई थीं लेकिन रिहायशी क्षेत्र हमेशा की तरह शांत थे और मैं घर में अकेली थी तभी फायरिंग की आवाज़ आई मुझे लगा कि ये मेरा वहम होगा लेकिन फिर एक के बाद एक फायरिंग होने लगी |इतनी शांत जगह पर जहाँ यदि ऊपर की मंजिल के घर से कोई आवाज़ आती है तो आप पुलिस में रिपोर्ट कर सकते हैं पांच मिनिट में पुलिस वहां आ जाती है वहां फायरिंग ?मैंने खिड़की से परिसर में झांक कर देखा |परिसर के भीतर लगे बड़े छायादार पेड़ों के नीचे युनिफोर्म पहने और कंधे पर बन्दूक लटकाए तीन चार युवक घूम रहे थे और पेड़ों की और देख रहे थे तभी एक ने फिर एक पेड़ की पत्तियों की और निशाना साधा और गोली चला दी |कुछ सेकिंड्स के बाद एक कौआ तडपता हुआ आकर नीचे गिरा |मैंने देखा वहां ज़मीन पर पांच छः कौए मरे हुए पड़े थे और उनमे से एक व्यक्ति उन्हें पोलीथिन में रख रहा था |पता पडा की पक्षी बहुत शोर करते हैं और गन्दगी भी इसलिए इन्हें मार दिया जाता है |वैसे एक खूबसूरत ‘’बर्ड पार्क’’यहाँ है जो काफी बड़ा और हजारों प्रकार की चिड़ियों से भरा हुआ है |कभी कभी रख रखाव और व्यवस्थाएं भी अचंभित कर देती हैं |लेकिन रिहायशी इलाकों में आने की सज़ा ...सज़ा इ मौत...

सिंगापूर डायरी

पंगोल के आठवें माले पर फ्लेट है जहाँ से दूर तक गगनचुम्बी इमारतें और रात में रोशनी में नहाई  सडकें/वाहन दिखाई देते हैं |यहाँ रात नहीं होती ..जी हाँ यहाँ रात को रोशनी से ढँक दिया जाता है |इमारतें सडकें सब रोशन ...|घर से कुछ दूरी पर दो मौल और दो सुपर मार्केट हैं जहाँ साग सब्जी से लेकर डिब्बा बंद सी फ़ूड तक मिलता है |यही रास्ता है उस जॉगिंग रेक तक जाने का जहाँ लोग पैदल या रंग बिरंगी लाइटों से जगमगाती सायकिलों पर तफरी करने आते हैं \यहाँ एक अजीब चलन है चौपहिया वाहनों से लेकर दुपहिये वाहनों तक हॉर्न नहीं बजाय जाता |बेवजह हॉर्न बजाना असभ्यता मन जाता है |कारों,बसों,स्कूटरों आदि में ये सिर्फ ‘’इमरजेंसी’’ के वक़्त इस्तेमाल किया जाता है |घुमने के लिए रिवर वियु के साथ चलते संकरे और साफ़ सुथरी सडक हिस्सों में बंटी हुई है एक सायकिल वालों के लिए और दूसरा पैदलियों के लिए |कुछ महीनों के बच्चों को पैम में घुमाने से लेकर बुजुर्गों को व्हील चेयर पर घुमाते हुए परिजन भी खूब दिखाई देते हैं |युवक युवतियों की तो ये पसंदीदा जगह है |नदी किनारे इस लम्बी सडक के बीच बीच में कुछ उंचाई पर कुर्सियां और बेंचें पडी हैं जहाँ बैठकर नदी पार सूर्योदय या सूर्यास्त देख सकते हैं |रिवर वियु को ले जाने वाली सडकों के बीच में ही कुछ खुले रेस्तरां भी हैं जो अमूमन भरे रहते हैं और जहाँ से सी फ़ूड की तीखी गंध तैरती रहती है |मैंने देखा कि हर ओपन रेस्तरां के पास एक बड़ा और गहरा हौज़ था जिसमे बहुत छोटी से बहुत बड़ी मछलियाँ थीं |वहां कुछ लोग ‘’काँटा’’ नदी में डाले बैठे थे इनमे स्त्री पुरुष बल्कि बच्चे भी थे |मुझे बताया गया कि यहाँ मछलियों केंकड़ों का शिकार करना एलाऊ है केंकड़े के लिए अलग हौज था |ज़िंदगी में पहली बार इतने बड़े केंकड़े और मछलियाँ देखी थीं |आगे जाने पर एक बिना पानी का सूखा हौज था जिसमे कुछ लकडियाँ और कुछ लोहे के बर्तन जैसे रखे थे जिसमे वो लोग मछलियों व् केंकड़ों को पका भी सकते हैं |मेरे लिए ये एक अद्भुत द्रश्य था |खैर हम लोग उस लम्बी सडक को पार करके बेंच पर बैठ गए और सूर्यास्त का द्रश्य देखने लगे |लौटते वक्त चाइनीज़ टेम्पल देखा जो रंग बिरंगी रोशनियों और पर्दों से झिलमिला रहा था |इनकी बनावट भारतीय मंदिरों की तरह नहीं थी ये ऊपर से चपटे और किनारों से मुड़े हुए थे |उनमे भी हमारे देवी देवताओं की तरह ‘देव स्थान’’ थे 

23 मई 2013

सिंगापूर डायरी


कल शाम एक बार फिर ''Gardens by the bay ''देखने गए |फूलों की हजारों किस्मे ...खुशबुओं से सराबोर पूरा क्षेत्र |देशी विदेशी  पर्यटकों की भरमार |कई मंजिलें ...हर मंजिल पर विभिन्नता ...कहीं पोस्टर्स और मूर्तियाँ कहीं  ,स्लाइड शो ..कहीं पर्यावरण प्रदर्शनी उन्ही के बीच चमचमाती ख़ूबसूरत रंग बिरंगी दुकानें |चौथी मंजिल पर एक हॉल  जहां एक बड़ा पर्दा लगा था यहीं एक स्लाइड शो चल रहा  था एक डोक्युमेंट्री फिल्म दिखाई जा रही थी . विषय था दुनियां 2110 तक कैसी होगी यदि प्रदूषण और वन कटाई को रोका नहीं गया |डरावनी थी वो ...नई बीमारियाँ ,सूखा,जनसँख्या ,तापक्रम, युद्ध के नए अन्वेषण , अराजकता ,सामाजिक जीवन ,भुखमरी |फिल्म को इतना जीवंत बनाया गया था लगता था जैसे सब कुछ सामने ही घटित हो रहा हो |लाईट और साउंड का जबरदस्त संयोजन |खैर आख़िरी यानी सबसे ऊंची मंजिल पर बादलों से रु ब रु कराया गया था |मद्धम रोशनी में घने बादलों के ठन्डे गुच्छे जिनके बीच में घूमते लोग |बच्चों को वहां विशेष आनंद आ रहा था हलाकि ठण्ड की फुरफुरी भी बहुत थी |(सिंगापूर डायरी )

22 मई 2013

देर रात


देर रात तक मैं
स्म्रतियों की सीढ़ी उतरती रही
अतीत के तहखाने में पहुंचकर
अँधेरे आलों में से उतारे
उम्र के कुछ धूल धूसरित साल
खोलकर उनकी तहों को सूंघा,
धूल को झाड़ा  
आँखों से लगाया उन्हें
मलालों के गीले हिस्सों पर
फिराईं अपनी उंगलियाँ
कोने में रखी बुझी मोमबत्ती को
जलाया फिर से
तमाम द्रश्य आँखें मींडते हुए उठ बैठे
मुझे मेरे घर पहुंचा  
सीढियां फिर उतर गई थी अपने तहखानों में
तीखी रोशनी की चकाचौंध गाढे अंधेरों से ज्यादा गहरी थी अब
ख़ूबसूरत केंडल स्टेंड पर रखी मोमबती
बहुत उदास थी  

19 मई 2013

जैसे उडी जहाज को पंछी ...


कुछ देर वो लोग उस आलीशान होटल के कमरे में अंगरेजी में बातें करते रहे और बातें करते हुए ही कमरे से जुड़े शानदार छज्जे में जा खड़े हुए |मै अपने चारों और विस्फरित नेत्रों से देख रहा था ‘’क्या ये कमरा भी इसी प्रथ्वी का कोई हिस्सा होगा ?’’मैंने अपने अनदेखे सपनों की तरफ एक प्रश्न उछाला (जो लौटकर फिर मेरे जेहन में आ गिरा )|अद्भुत अभूतपूर्व द्रश्य क्रमशः प्रकट हो रहे थे उसी क्रम में अब एक होटल कर्मचारी जिसकी सफ़ेद चमचमाती वर्दी मेरे मैले कुचैले कपड़ों से कई गुना व्यवस्थित और साफ़ सुथरी थी मेरे सामने कुछ इस्त्री किये तहशुदा कपडे लेकर खड़ा था बिना कुछ बोले बुत की तरह |मै मन ही मन खुद को अब तक इतना असभ्य और गया गुजरा मान चुका था कि अब उसकी खाली नज़रें और सभी प्रशन मेरे सामने निरीह हाथ बांधे खड़े थे |तब मुझे पहली बार ये महसूस हुआ कि जिस जगह पर मै लाया गया हूँ वहां शब्द सुविधाओं से कम पेश किये जाते हैं |(उपन्यास अंश) 

17 मई 2013

कहो तथागत


मै महामाया हूँ ,मै ही गौतमी,यशोधरा ,सुजाता,विशाखा ,क्षेमी और क्रशा हूँ | लेकिन ज़न्म से म्रत्यु तक अंततः मात्र एक स्त्री ...नाम तो देह के होते हैं वर्ण के नहीं ..|ज़र्ज़र देह,शव,दरिद्रता ,देखकर तुम्हे दुःख हुआ था और इनसे मुक्ति का मार्ग खोजने तुम निकल पड़े थे आधी रात में सबको सोया छोड़कर वन में |अपने कर्तव्यों को द्रष्टिपरे कर जीवन म्रत्यु का रहस्य सुलझाने और ‘अपनों’ के स्वप्नों की तमाम आशाओं  को ध्वस्त छिन्न भिन्न करके | तुमने एक व्यक्ति को देखा था जिसकी कमर झुक चुकी थी उसकी देह ज़र्ज़र हो चुकी थी जो ठीक से सांस भी नहीं ले पा रहा था ,तब तुमने अपने सारथि सौम्य से पूछा था और जब सौम्य ने बताया था कि ये एक वृद्ध पुरुष है सभी को ऐसा ही होना पड़ता है ये नियति है जीव की तब तुम स्तब्ध रह गए थे ,और फिर उसके बाद म्रत्यु,जीवन ,आयु के सत्य ,इन सबसे तुम्हारे मन में एक विरक्ति की भावना पैदा हुई थी और तुमने गृह त्याग कर दिया था |शरीर और ‘’आने जाने ‘ से मुक्ति का मार्ग खोजने निकल पड़े थे सत्य की खोज में |
 आज मै तुमसे पूछती हूँ तथागत क्या सचमुच तुम खोज पाए मुक्ति का मार्ग?यदि हाँ ,तो क्या हर मुक्ति का रास्ता विरक्ति से ही होकर गुजरता है ?और यदि ये भी सत्य है तो तो स्त्री को मुक्ति की अभिलाषा होना आपकी नियमावलियों के खिलाफ क्यूँ था?
क्या म्रत्यु और जीवन मरण के रहस्यों को वस्तुतः सुलझा पाए?क्या तुमने बयासी वर्ष की आयु तक वही सब नहीं भोगा जिसके लिए तुमने गृह त्याग कर प्रवजना ली थी ?...कि तुम्हारी सुदर्शन देह के भीतर भी एक मन तो था ही तुमने महसूस तो किया ही होगा उस अंतर्द्वंद को ...मुक्ति मार्ग और आकर्षण के मध्य के उस बहुत महीन पारदर्शी झीने आवरण को ?बावजूद ह्रदय परिवर्तन के इस मुक्ति यात्रा के मार्ग में तुम्हे कभी स्मृति आई तो आई होगी उन स्त्रियों की जो तुम्हारे जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना बनकर आईं और जिन्हें तुमने कभी अपनी मुक्ति अभियान के मार्ग में व्यवधान मानकर और कभी उन्हें महान बनाकर दूर कर दिया ?लेकिन इस दीर्घ जीवन में क्या तुम्हारे उस विरक्त और सन्यासी जीवन के विशाल आँगन में कोई एक अन्धेरा कोना इन्हीं स्त्रियों से ‘कलुषित’ नहीं रहा ?
मै तुम्हारी जीवनदायिनी ,तुम्हारी माँ महामाया.... जिसकी गोद में तुमने ऑंखें खोलीं |लेकिन सिर्फ सात दिनों के बाद मेरा तुम्हारा नाता टूट गया तब जब तुम माँ को सिर्फ दुनियां की इकलौती उस गर्माहट से पहचानते थे जो किसी भी शिशु के लिए पूरी प्रथ्वी होती है तुम्हारे शिशु रुदन और द्रष्टि ने भी तो ढूंढा होगा मुझे चारों ओर ...और निराश होकर तुमने अपनी ऑंखें झपकी होंगी उस निराशा को अपनी बरोनियों की ओट में छिपा लिया होगा! उम्र की उस नाज़ुक अवस्था में जब मिलने और खोने के अर्थ से परे उसकी स्मृति उसके अवचेतन में कहीं धंस जाती है |अपनी विमाता गौतमी के सरंक्षण में तुमने गौतम नाम पाया लेकिन तुम्हारी आत्मा कभी मुझे अपनी जन्मदात्री को विस्मृत कर पाई ?
मै यशोधरा ..तुम्हारी ब्याहता पत्नी ...तुम्हारे पुत्र की जननी |क्या कमी थी मेरी पतिव्रता भावना में ,मै बाँझ भी नहीं ना ही दायित्व हीन मै तो अविश्वसनीय भी नहीं फिर अपने सभी स्त्रियोचित उत्तरदायित्व बखूबी पूरे करने के मुझे किस बात की सज़ा दी |उर्मिला,द्रोपदी,कुंती,शकुन्तला,अहिल्या की श्रंखला में तुमने मुझे भी तो एक कड़ी बना दिया और इतिहास पुरुष बन गए ?आखिर क्यूँ ? पुरानों से लेकर राजाओं महाराजाओं  यहाँ तक कि संतों तक ने स्त्रियों की भावना को कुचलकर अपना स्वस्ति का परचम लहराया ...और महापुरुष कहलाये |लेकिन तुम उनसे अलग थे ....क्यूँ की तुम तथागत थे बुद्ध थे पार्थक्य ... तुम्हारी निर्लप्ति को भी मैंने तुम्हारी शिष्या बन शिरोधार्य किया ..लेकिन अंतत मै स्त्री ही तो थी और एक माता भी तो ?
राजकुमार सिद्धार्थ ...जब आप राजमहल से बाहर निकलते थे कुमारियाँ अपनी अट्टालिकाओं पर खडी होकर आपको निहारा करती थीं ,उस दिन जब आप शक्य कुमारों के साथ उद्यान विचरण व् जलक्रीडा कर वापस अपने महल को जा रहे थे तब मै भी अन्य कुमारियों के साथ उसी अट्टालिका पर खडी आपको अपलक निहार रही थी... आसक्त हो गई थी |हाँ मै क्रशा गौतमी ....स्मरण है आपको तथागत ?...अनायास आपकी द्रष्टि मुझ पर पडी थी और आप भी कुछ क्षण मुझे निहारते रहे थे |आप चलते चलते वहीं ठिठक कर खड़े हो गए थे |मै विक्षिप्त सी आपको अपलक निहार रही थी |अनायास आपने अपना मुक्ताहार मेरी और उछाला था मै खुशी से बौरा गई थी |मेरी आँखों में काम वेग उतर आया था ...मै आपके अंक शयन के लिए आतुर हो गई थी मै अट्टालिका से पागलों की तरह दौड़ते हुई नीचे आई थी परन्तु आपने तो मुझे वो माला गुरु स्वरुप भेंट की थी ! क्या
 विरक्ति किसी की आसक्ति के ऊपर ही राज्य करती है?

10 मई 2013

दिनांक -१०-५-२०१३
कल जेट एयरवेज़ की फ्लाईट से सिंगापूर पहुँची |चानी हवाई अड्डे से पंगोल सारा समीन के साथ उनके घर  |नया शानदार फ्लेट आठवीं मंजिल पर खूबसूरती के अलावा  और कुछ नहीं घर में भी और बाहर भी  |दौनों आर्टिस्ट हैं ...बड़े बड़े शीशे पूरे घर में ख़ूबसूरत पेंटिंग्स कम लेकिन शानदार फर्नीचर बहुत करीने और मेहनत से सजाया गया |मैंने पहले भी ये महसूस किया है कि (फ्लाईट से )जैसे जैसे आसमान में रोशनी (धूप) की तीव्रता यानी नीले पटल पर छितराए सफ़ेद बादलों के गुछे कहीं गाढे कहीं इक परतीय जब धुंधलाने लगते हैं और मौसम का मिज़ाज कुछ ढीला होने लगता है ये एक पुख्ता सूचना होती है (प्रकृति प्रदत्त)की अब सिंगापूर आ रहा है |(क्या मौसम भी जानता है कहाँ कैसे उगना है उसे )?खैर सिंगापूर के समयानुसार  यहाँ साढ़े पांच बजे थे | सामान्य चहल पहल,सुकून,कोई हडबडाहट नहीं न चेहरों पर न सडकों पर |सब अपने अपने कामों गतिविधियों में मसरूफ |मुझे यहाँ की ये अदा भाती  है लोग दूसरों से ज्यादा अपनी ज़िंदगी से मतलब रखते हैं और सुख दुःख अपने स्तर पर भोगते हैं |राजनैतिक सामाजिक स्थितियां उनकी दिनचर्या और ज़िंदगी में ज्यादा जगह नहीं घेरतीं |पूरा देश रात में भी रोशनी से सराबोर रहता है |