7 जून 2010

अनुभूति 2

वे सूखा पत्ता ,जो कभी,
विश्वसनीय हिस्सा हुआ करता था
उस विशालकाय पेड का
आज,गर्म हवाओं की साजिश ने
पतझड की आड ले
कर दिया बेरहमी से,ध्वस्त उसे
शाख से विलग
शायद इसलिये क्योंकि,मर चुका था उसमें,
हवा का रुख बदल देने का जज्बा,
या चुक गई थी ताकत,तूफान के आगे
बेखैाफ सीना ताने खडे रहने की
वक्त कोई रेलगाडी तो नहीं,
कि हर स्टेशन पर रुककर
प्रतीक्षा करेगी यात्री की
सूरज की लकीर से टिका और
आकाश से ठिठोली करता वो पेड
बेखबर सूखे पत्ते से,जो कभी
सहयात्री हुआ करता था
आज पडा है बेबस उदास,
उसी विशाल धने पेड के नीचे
उसी के आश्रय में
बिल्कुल अपरिचित सा
एक दिन उसे,एक परिंदे ने
हिस्सा बना
अपने धरोंदे का,
टांग दिया
कटोरेनुमा धोंसले की शक्ल में
बुजुर्गवार के एन मस्तक पर,
वहीं जहां कुछ रोज पहले
वसन्तोत्सव में
झूल झूम जाती थीं शाखे।
हवा के साथ,
अठख्ेालियां करती,
शाखों के संग सींकें,और
सींकों में टंका
वेा हरियाली पत्ता
ब्ूाढा पेड
मुस्कुरा रहा था
रुई के नरम फोहे जब
चहचहाते खोलेंगे नन्ही आंखें
उसकी गोद में
आशीष झरेंगे तब
उसकी सूनी आंखेंा से भी
हरी हो जाएगी जिंदगी फिर से
नहीं जानता
कि धेंासले का वक्त
गुजर जाने पर उड जायेंगे
जब विहग आकाश में
और सूने धोंसलों का अस्तित्व होता नहीं,बुढियाई सींकों
और सूखी पत्तियों से बेहतर

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दमदार कविता है.
    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल

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  2. aapka swagat hai hindi blog lekhan avam chitthajagat me ..........maa sarasvati aapki kalam ko tej pradan karen aise kamna h meri

    www.drvikastomar.blogspot.com

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  3. "नहीं जानता
    कि धेंासले का वक्त
    गुजर जाने पर उड जायेंगे
    जब विहग आकाश में
    और सूने धोंसलों का अस्तित्व होता नहीं,बुढियाई सींकों
    और सूखी पत्तियों से बेहतर"
    बात भी सच्ची और अच्छी लेकिन अंदाजे बयां लाजवाब

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  4. बुढियाई सींकों....!!! अद्भुत और अतुलनीय उपमा !!
    हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं ई-गुरु राजीव हार्दिक स्वागत करता हूँ.

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  5. sundar rachna..

    गाँधी जी का तीन बन्दर का सिद्धांत-एक नकारात्मक सिद्धांत http://bit.ly/b6I9y

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  6. बहुत सुंदर रचना है...
    http://merajawab.blogspot.com

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  7. बहुत बढ़िया बात ...
    www.jugaali.blogspot.com

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  8. pratibha ji
    sari bat soch ki hai nnhi jan chidiya ko slam jisne us ptte ko ek ni shkl di baki vkt pe kya joor hai .

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  9. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  10. मेरी प्रथम कविता लेखन के दुस्साहस को आपने न सिर्फ तरजीह दी बल्कि प्रोत्साहन भी दिया मै आपकी शुक्रगुजार हूं ।आशा करती हूं कि आपकी रचनाएं पढने का अवसर मिलता रहेगा
    वंदना

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  11. वक्त कोई रेलगाडी तो नहीं,
    कि हर स्टेशन पर रुककर
    प्रतीक्षा करेगी यात्री की
    सूरज की लकीर से टिका और
    आकाश से ठिठोली करता वो पेड
    बेखबर सूखे पत्ते से,जो कभी
    सहयात्री हुआ करता था
    क्या सुंदर उपमा दी है , बहुत खूब, बहुत अच्छी कविता है,सुंदर भाव

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  12. aapne ise anubhuti naam diya hai kavitaye aksar kavi ki bhavna se utprerit hoti hai wahi samne wale le dil ko chu pati hai aap jo kahna chah rahi hai aur unke piche ke aapke bhav gahre hai par kya aap jab kavita nahi likhti us waqt bhi aapke man main aise hi bhav rahte hai ? deepak17480@gmail.com

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