गर्म भपाती धरती ने जब
तिलमिलाकर
देखा होगा कोई पहाड़
उठाई होगी सीली हथेली
प्रार्थना में
सूरज की तरफ
एक चिड़िया उड़ने लगी होगी
सहसा
आकाश की चोहद्दी में
बैठ गई होगी धुरी की
सबसे दुरूह ऊँचाइ पर |
उड़ानों को
हवा ने जिस की बुना होगा
रेशमी उजालों से
समय के केनवास पर
तिनके को रात की स्याही में
डुबा
खींची होंगी कुछ लकीरें
नन्ही चोंच से
चिड़िया ने,
हरहरा बह निकली होगी कोई नदी
डुबोई होगी जिसमे चिड़िया
ने
अपनी प्यास |
बहुत सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संगीता जी
हटाएंबहुत खूबसूरत शब्दों का माया जाल ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नासवा जी
हटाएंबहुत खूबसूरत कविता
जवाब देंहटाएंशुक्रिया वंदना इस हौसला अफजाई के लिए ...स्वागत है आपका ''चिंतन '' में
हटाएंवाह काव्य में बिखरा सौंदर्य ...!!
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ...!!
शुभकामनायें.
शुक्रिया अनुपमा जी :)
हटाएंजी ज़रूर ...धन्यवाद संगीता जी
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आपकी यशवंत जी
जवाब देंहटाएंक्या बढ़िया भाव हैं और क्या ही खूब शब्दों का चयन...बेहद अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंthanks:)
हटाएं