28 मई 2013

सिंगापूर डायरी

पंगोल के आठवें माले पर फ्लेट है जहाँ से दूर तक गगनचुम्बी इमारतें और रात में रोशनी में नहाई  सडकें/वाहन दिखाई देते हैं |यहाँ रात नहीं होती ..जी हाँ यहाँ रात को रोशनी से ढँक दिया जाता है |इमारतें सडकें सब रोशन ...|घर से कुछ दूरी पर दो मौल और दो सुपर मार्केट हैं जहाँ साग सब्जी से लेकर डिब्बा बंद सी फ़ूड तक मिलता है |यही रास्ता है उस जॉगिंग रेक तक जाने का जहाँ लोग पैदल या रंग बिरंगी लाइटों से जगमगाती सायकिलों पर तफरी करने आते हैं \यहाँ एक अजीब चलन है चौपहिया वाहनों से लेकर दुपहिये वाहनों तक हॉर्न नहीं बजाय जाता |बेवजह हॉर्न बजाना असभ्यता मन जाता है |कारों,बसों,स्कूटरों आदि में ये सिर्फ ‘’इमरजेंसी’’ के वक़्त इस्तेमाल किया जाता है |घुमने के लिए रिवर वियु के साथ चलते संकरे और साफ़ सुथरी सडक हिस्सों में बंटी हुई है एक सायकिल वालों के लिए और दूसरा पैदलियों के लिए |कुछ महीनों के बच्चों को पैम में घुमाने से लेकर बुजुर्गों को व्हील चेयर पर घुमाते हुए परिजन भी खूब दिखाई देते हैं |युवक युवतियों की तो ये पसंदीदा जगह है |नदी किनारे इस लम्बी सडक के बीच बीच में कुछ उंचाई पर कुर्सियां और बेंचें पडी हैं जहाँ बैठकर नदी पार सूर्योदय या सूर्यास्त देख सकते हैं |रिवर वियु को ले जाने वाली सडकों के बीच में ही कुछ खुले रेस्तरां भी हैं जो अमूमन भरे रहते हैं और जहाँ से सी फ़ूड की तीखी गंध तैरती रहती है |मैंने देखा कि हर ओपन रेस्तरां के पास एक बड़ा और गहरा हौज़ था जिसमे बहुत छोटी से बहुत बड़ी मछलियाँ थीं |वहां कुछ लोग ‘’काँटा’’ नदी में डाले बैठे थे इनमे स्त्री पुरुष बल्कि बच्चे भी थे |मुझे बताया गया कि यहाँ मछलियों केंकड़ों का शिकार करना एलाऊ है केंकड़े के लिए अलग हौज था |ज़िंदगी में पहली बार इतने बड़े केंकड़े और मछलियाँ देखी थीं |आगे जाने पर एक बिना पानी का सूखा हौज था जिसमे कुछ लकडियाँ और कुछ लोहे के बर्तन जैसे रखे थे जिसमे वो लोग मछलियों व् केंकड़ों को पका भी सकते हैं |मेरे लिए ये एक अद्भुत द्रश्य था |खैर हम लोग उस लम्बी सडक को पार करके बेंच पर बैठ गए और सूर्यास्त का द्रश्य देखने लगे |लौटते वक्त चाइनीज़ टेम्पल देखा जो रंग बिरंगी रोशनियों और पर्दों से झिलमिला रहा था |इनकी बनावट भारतीय मंदिरों की तरह नहीं थी ये ऊपर से चपटे और किनारों से मुड़े हुए थे |उनमे भी हमारे देवी देवताओं की तरह ‘देव स्थान’’ थे 

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