भोपाल
ने कई दौर देखे
कभी यहाँ
की बेगमें मशहूर थीं
परी
बाज़ार इन्हीं बेगमों का
शोपिंग
सेंटर हुआ करता था
पूरे
बाज़ार में विक्रेता होतीं औरतें ही ,
काले
बुर्कों में से नहीं दिखाई देते थे जिनके आंसू
ना ही
चेहरे के दाग ...
नवाबों
की दूसरी तीसरी बीवियां
सात
पर्दों में बंद आतीं बग्घियों से
बग्घियों
की मतवाली चाल से
खौफ
खाते थे रास्ते ...और हो जाते सूने जब
बेगमें
निकलतीं शहर में तफरी करने
अपनी
शानदार बंद
बग्ग्घियों
में बैठकर
शहर
के परकोटे
बड़ी
राहत थे नवाबों की फ़िक्रों के
परकोटों
के ढह जाते ही
दुबक
गईं बेगमे महलों में
और
फिर
ये
दौर भी ख़त्म हुआ
होटलों
का भी अपना अलग ही ज़माना और मज़ा था
‘’को
खां भोपाल गए तो ‘मदीना’ की बिरयानी खाई के नईं
नईं?.....
लाहौल
विला कुव्वत ..तो क्या मियाँ ख़ाक छानी आपने
भोपाल
जाक़े जो ‘मदीने’ का गोश्त नहीं चखा ?’’
पीर
गेट पर हमेशा जाम लगा रहता गाड़ियों का
क्यूँ
की अफगान होटल पर खाते थे लोग
बिरयानी
बीच सडक तक खड़े होके,उंगलियाँ चाटते
फिर
ज़माना बदला और न्यू मार्केट में
हकीम
होटल की कहानियाँ चलने लगीं
धीरे
से वहीं रोशन पूरा में उग आई
‘’बापू
की कुटीया ‘’बापू यानी
गांधीजी
...तब के जब वे
गोश्त
खाना छोड़ शुद्ध शाकाहारी हो गए थे
अब तो
भोपाल में
लज़ीज़ चाइनीज़
और थाई फ़ूड मिलने लगे
आमेर
बेकरी जैसे सेंटर खुल गए जहाँ
मॉडर्न
लड़के लडकियां देर रात तक
लज़ीज़
खाने का मज़ा लेते हैं ...
न्यू
मार्केट में टॉप एन टाउन में बारहों महीने
किस्म
किस्म की आइसक्रीम मिलती है
यहीं
पर पुराने के नाम पर बची है तो एक दूकान
और
दूकान के सामने चूना चाटते हुए निखालिस भोपाली
चौरसिया
का ‘’ब्रजवासी पान भण्डार’’
परकोटों
की अदब तालीम के ज़माने गए
न रहा
अब मुर्गे लड़ाने का दौर ना इज्तिमा के मेले में वो मज़ा
अब तो
खुले चौड़े मैदान है जिनके सिरे नहीं दीखते |
नगरों का व्यक्तित्व भी बदलता है, देश के परिवेश के अनुसार।
जवाब देंहटाएंभोपाल की अपनी विरासत है ... मैं तो इसे ताल-तलैय्यों के रूप में जानता हूँ ..मेरे पटना की भी अपनी विश्सेश्ता है मेरे भी ब्लॉग पर आये... दीपावली की बधाई
जवाब देंहटाएंshukriya praveen ji ,babbapandey ji ...ji zarur apka blog dekhna hai
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