एक अजीबोगरीब नोबेल पुरस्कार विजेता ...दारियो फ़ो
क्या आप यकीन करेंगे कि दुनियां के सबसे महंगे और प्रतिष्ठित पुरस्कार नोबेल पुरस्कार से एक ऐसे विवादास्पद साहित्यकार (मूलतः नाटककार)को नवाज़ा गया था जो अपनी विवादित रचनाओं के कारन न सिर्फ कई बार पिटा ,अपमानित हुआ बल्कि उसे जेल में बंद कर यातनाएं तक दी गईं थीं लेकिन उसने लिखना नहीं छोड़ा |इटली के महान नाटककार और अभिनेता दारियो फ़ो ने राजनीतिज्ञों,शासकों समस्त बुर्जुआ वर्ग,पादरियों ,पुलिस कर्मियों आदि से सम्बंधित विषयों को अपने व्यंगात्मक,तीखे कटाक्ष और माजाकिये नाटकों का प्रमुख विषय बनाया |वे प्रयोगवादी नाटककार और अभिनेता हैं फ़ो का समस्त लेखन सर्वहारा शोषित और उत्पीडित तबके के लिए है |उन्हें अपने सबसे चर्चित नाटक ‘’एक्सीडेंटल डेथ ऑफ एन एनार्किस्ट’’ पर नोबेल पुरस्कार दिया गया | इसके अलावा पुरस्कार भाषण में उनके दुसरे नाटक ‘’वी कांट पे ,वी डोंट पे’’को भी सराहा गया |जब उन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त होने की सूचना मिली तब वो कार से कहीं जा रहे थे |एक अन्य कार चालक ने उन्हें रोककर ये सूचना दी तो वो हतप्रभ रह गए |उन्होंने हँसते हुए कहा ‘’मुझे तो लगता था कि मैं ही दुनिया को चकित कर सकता हूँ ‘’|उनके नाटकों की खासियत ये रही कि आम जनता को उनके नाटक बेहद प्रिय थे क्यूँ कि वो उन्हीं के लिए लिखे गए थे लेकिन वैटिकन ,राजनीतिज्ञों,पादरियों आदि को वे भड़काऊ और प्रतिबंधित करने लायक लगते थे तभी तो उनके एक नाटक ‘’मिस्तेरो वुफो ‘’को दिखाया गया तो वैटिकन ने इस नाटक को टेलीविज़न पर दिखाए गए कार्यक्रमों में सर्वाधिक ‘’ब्लेस्फीमल’’ कह कर आलोचना की | मजदूरों के लिए लिखे गए एक नाटक के लिए उन्हें टेलीविजन के कार्यक्रमों से निष्काषित कर दिया गया था ये प्रतिबन्ध पंद्रह वर्षों तक रहा |उल्लेखनीय है कि वो अपने लेखन से नौकरशाहों,शोषकों आदि के ही नहीं बल्कि सर्वहारा और पीड़ित वर्ग के दिलों में भी एक हलचल पैदा करना चाहते थे |कहा जाता है कि फ़ो जो हमेशा आतंकवाद के खिलाफ लिखते रहे लेकिन उनके खिलाफ दुष्प्रचार के तहत उन्हें अमेरिका में आतंकवादी कहकर रोक दिया गया था |ये प्रतिबन्ध उन पर दो वर्षों तक रहा |सुप्रसिद्ध आलोचक /समीक्षक देवेन्द्र इस्सर कहते हैं ‘’ फ़ो के नाटक इब्सन और बनार्ड शा की याद दिलाते हैं |’’उनकी पत्नी फ्रांका रामे स्वयं एक मंजी हुई अभिनेत्री थीं |उन्होंने फ़ो के कई नाटकों में अभिनय किया और पिछले वर्ष यानी २०१३ में उनका देहांत हो गया |रामे ने अपने पति दारियो फ़ो के साथ मिलकर कुछ नाटक लिखे भी थे जिनमे प्रमुख है ‘’इट इज ऑल बैड एंड बोल्ड ‘’इसमें रामे ने अविस्मरनीय अभिनय भी किया था | रामे ने स्वयं नारी मुक्ति को विषय बनाकर कई मोनोलॉग लिखे हैं जिन्हें ‘फेमिनिस्ट क्लासिक’’ कहा जाता है |1973 में फासीवादियों द्वारा रामे का अपहरण कर लिया गया और खून में लथपथ सडक पर फेंक दिया गया था |इसके बावजूद पति पत्नी ने हार नहीं मानी और वे नाटकों को लिखने व मंचित करने में जुटे रहे | न सिर्फ एक सार्थक लेखन करने ,नोबेल पुरस्कार तक पहुँचने के लिए बल्कि एक दुसरे के लिए समर्पित दंपत्ति का एक अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए भी उन्हें याद किया जाएगा |जब फ़ो को 1997 साहित्य नोबेल पुरस्कार घोषित हुआ तो उन्होंने उसे अपने उन अभिनेताओं को देने की घोषणा की ये कहकर कि ‘’जिन्होंने पैरोडी और व्यंग द्वारा अन्याय के विरुद्ध युद्ध किया जिनमे ये कहने के साहस है कि ‘’सम्राट वस्त्र विहीन है ‘’उन्हें समर्पित ‘’
क्या आप यकीन करेंगे कि दुनियां के सबसे महंगे और प्रतिष्ठित पुरस्कार नोबेल पुरस्कार से एक ऐसे विवादास्पद साहित्यकार (मूलतः नाटककार)को नवाज़ा गया था जो अपनी विवादित रचनाओं के कारन न सिर्फ कई बार पिटा ,अपमानित हुआ बल्कि उसे जेल में बंद कर यातनाएं तक दी गईं थीं लेकिन उसने लिखना नहीं छोड़ा |इटली के महान नाटककार और अभिनेता दारियो फ़ो ने राजनीतिज्ञों,शासकों समस्त बुर्जुआ वर्ग,पादरियों ,पुलिस कर्मियों आदि से सम्बंधित विषयों को अपने व्यंगात्मक,तीखे कटाक्ष और माजाकिये नाटकों का प्रमुख विषय बनाया |वे प्रयोगवादी नाटककार और अभिनेता हैं फ़ो का समस्त लेखन सर्वहारा शोषित और उत्पीडित तबके के लिए है |उन्हें अपने सबसे चर्चित नाटक ‘’एक्सीडेंटल डेथ ऑफ एन एनार्किस्ट’’ पर नोबेल पुरस्कार दिया गया | इसके अलावा पुरस्कार भाषण में उनके दुसरे नाटक ‘’वी कांट पे ,वी डोंट पे’’को भी सराहा गया |जब उन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त होने की सूचना मिली तब वो कार से कहीं जा रहे थे |एक अन्य कार चालक ने उन्हें रोककर ये सूचना दी तो वो हतप्रभ रह गए |उन्होंने हँसते हुए कहा ‘’मुझे तो लगता था कि मैं ही दुनिया को चकित कर सकता हूँ ‘’|उनके नाटकों की खासियत ये रही कि आम जनता को उनके नाटक बेहद प्रिय थे क्यूँ कि वो उन्हीं के लिए लिखे गए थे लेकिन वैटिकन ,राजनीतिज्ञों,पादरियों आदि को वे भड़काऊ और प्रतिबंधित करने लायक लगते थे तभी तो उनके एक नाटक ‘’मिस्तेरो वुफो ‘’को दिखाया गया तो वैटिकन ने इस नाटक को टेलीविज़न पर दिखाए गए कार्यक्रमों में सर्वाधिक ‘’ब्लेस्फीमल’’ कह कर आलोचना की | मजदूरों के लिए लिखे गए एक नाटक के लिए उन्हें टेलीविजन के कार्यक्रमों से निष्काषित कर दिया गया था ये प्रतिबन्ध पंद्रह वर्षों तक रहा |उल्लेखनीय है कि वो अपने लेखन से नौकरशाहों,शोषकों आदि के ही नहीं बल्कि सर्वहारा और पीड़ित वर्ग के दिलों में भी एक हलचल पैदा करना चाहते थे |कहा जाता है कि फ़ो जो हमेशा आतंकवाद के खिलाफ लिखते रहे लेकिन उनके खिलाफ दुष्प्रचार के तहत उन्हें अमेरिका में आतंकवादी कहकर रोक दिया गया था |ये प्रतिबन्ध उन पर दो वर्षों तक रहा |सुप्रसिद्ध आलोचक /समीक्षक देवेन्द्र इस्सर कहते हैं ‘’ फ़ो के नाटक इब्सन और बनार्ड शा की याद दिलाते हैं |’’उनकी पत्नी फ्रांका रामे स्वयं एक मंजी हुई अभिनेत्री थीं |उन्होंने फ़ो के कई नाटकों में अभिनय किया और पिछले वर्ष यानी २०१३ में उनका देहांत हो गया |रामे ने अपने पति दारियो फ़ो के साथ मिलकर कुछ नाटक लिखे भी थे जिनमे प्रमुख है ‘’इट इज ऑल बैड एंड बोल्ड ‘’इसमें रामे ने अविस्मरनीय अभिनय भी किया था | रामे ने स्वयं नारी मुक्ति को विषय बनाकर कई मोनोलॉग लिखे हैं जिन्हें ‘फेमिनिस्ट क्लासिक’’ कहा जाता है |1973 में फासीवादियों द्वारा रामे का अपहरण कर लिया गया और खून में लथपथ सडक पर फेंक दिया गया था |इसके बावजूद पति पत्नी ने हार नहीं मानी और वे नाटकों को लिखने व मंचित करने में जुटे रहे | न सिर्फ एक सार्थक लेखन करने ,नोबेल पुरस्कार तक पहुँचने के लिए बल्कि एक दुसरे के लिए समर्पित दंपत्ति का एक अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए भी उन्हें याद किया जाएगा |जब फ़ो को 1997 साहित्य नोबेल पुरस्कार घोषित हुआ तो उन्होंने उसे अपने उन अभिनेताओं को देने की घोषणा की ये कहकर कि ‘’जिन्होंने पैरोडी और व्यंग द्वारा अन्याय के विरुद्ध युद्ध किया जिनमे ये कहने के साहस है कि ‘’सम्राट वस्त्र विहीन है ‘’उन्हें समर्पित ‘’
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