7 मार्च 2018

पुरुष गद्यकारों का स्त्री विमर्श ( अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर विशेष )



’स्त्री विमर्श’’ के औचित्य या इस की पैदाइश पर विचार करे तो सबसे पहले एक शब्द मस्तिष्क में आता है जो है ‘’ पुरुष सत्ता’’ |इस शब्द के मूल में ही एक गुलामियत और सामंतवादिता का आभास होता है | पुरुष जो स्त्री का सहोदर भी है और उस पर ‘’राज’’ करने और उसे शारीरिक मानसिक तौर पर परतंत्र बनाने वाला कारक भी |लेकिन क्या सच्चाई सिर्फ और सिर्फ यही है ? क्या पुरुष प्रजाति ही स्त्री शोषक रही है? ये जानने के लिए हमें इतिहास के कुछ साहित्यिक पृष्ट पलटने होंगी | उल्लेखनीय है कि अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर, यह दिवस सबसे पहले २८ फ़रवरी १९०९ को मनाया गया | १९१० में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया।१९१७ में रूस की महिलाओं ने, महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया |ये इस तथ्य को भी प्रमाणित करता है कि किसी एक देश या किसी एक समाज की स्त्री ही प्रताड़ित नहीं रही बल्कि सम्पूर्ण विश्व की महिलाएं पुरुष के अधीन और उनकी कहीं न कहीं गुलाम रही हैं
 हिन्दुस्तान में महिला दिवस का क्या महत्व और सोच रही है इसे किसी एक खांचे में बांधकर तो नहीं देखा जा सकता और ना ही इतिहास को सामने रखकर उसकी मीमांसा की जा सकती |युग के साथ स्थितियां और सोच बदलती ही है और बदली है |  साहित्य का इतिहास साक्षी है कि यहाँ पुरुष रचनाकारों ने अपने लेखन के माध्यम से स्त्रियों की न सिर्फ वास्तविक स्थिति का वर्णन किया है बल्कि उनके उत्थान की पुरजोर कोशिशें भी |
दुनियां स्त्री पर टिकी है
उपरोक्त कथन हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण लेखक जैनेन्द्र का है | जेनेन्द्र कुमार का अधिकाँश साहित्य स्त्री केन्द्रित है | जैनेन्द्र कुमार के स्त्री पात्र शोषित हैं,परतंत्र हैं , दबे हुए हैं लेकिन उनकी स्त्री साहसी , आत्मविश्वासी और जूझने वाली ( संघर्षरत ) भी है |जेनेन्द्र कुमार के स्त्री पात्र महान बँगला लेखक शरत चंद की याद भी दिलाते है |दौनों ने ही पुरुष सत्ता को कटघरे में खड़े हो स्त्री स्वातंत्र्य की वकालत की है और स्त्री को ‘’ सर्वस्व’’ रूप में स्वीकार किया है | जेनेन्द्र कुमार और शरतचंद की कई कहानी व् उपन्यासों के नाम ही स्त्री केन्द्रित हैं जैसे जैनेन्द्र की रचना ‘’ सुनीता, कल्याणी या शुभदा |शरतचंद की चरित्रहीन ,बड़ी दीदी , ब्राहमण की बेटी , सविता, परिणीता, मंझली दीदी , शुभदा, अनुपमा का प्रेम
प्रेमचंद – प्रेमचंद ने कहानी में स्त्री के यथार्थ का वर्णन ही नहीं किया बल्कि उनकी कहानियों में एक आव्हान भी है |प्रेमचंद का स्पष्ट कहना था कि - "नारी की उन्नति के बिना समाज का विकास संभव नहीं है ,उसे समाज में पूरा आदर दिया जाना चाहिए, तभी समाज उन्नति करेगाI " उन्होंने स्त्री पुरुष समानता को सही ठहराते हुए कहा कि ‘’स्त्री और पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, एक के अभाव में स्त्री और पुरुष दोनों की दुर्गति मानते हैI’’उन्होंने अपने साहित्य में स्त्री पक्षधरता और उसके कटु यथार्थ का उल्लेख भी किया जैसे गोदान का एक वाक्य ‘’जो माँ को रोटी न दे सका वो गाय को रोटी क्या देगा?’’बूढ़ी काकी,बेटों वाली विधवा या बड़े घर की बेटी आदि उनकी ऐसी ही रचनाएं हैं |गोदान में ही उन्होंने मध्यम वर्गीय मालती और गरीब किसान परिवार की धनियाँ के बीच की असमानताओं व् समस्याओं को बताया है |
- प्रेमचंद स्त्री (पत्नी) की महत्ता को स्वीकार करते है| 'गोदान' में भोला होरी से कहता है –‘मेरा तो घर उजड़ गया, यहां तो एक लोटा पानी देने वाला भी नहीं हैI"( दरअसल प्रेमचंद की ‘’स्त्री’’ कहीं अपने पति से सिर्फ प्रेम की अपेक्षा रखती हैं इसी में उनका सुख है जैसे ठाकुर का कुआ की गंगा , ‘’ पासवाली’’ की गुलिया, ‘’ गोदान ‘’ की धनियाँ ,और कहीं न कहीं उनका मानना ये भी है कि निर्धनता में प्रेम और परस्पर अवलंबन अपेक्षाकृत अधिक मज़बूत होते हैं जैसे ‘’गोदान ‘’ की गोविन्दी या ‘’ सेवा सदन ‘’ की सुमन अथवा ‘’कर्मभूमि’’ की सुखदा |
स्त्रियों की दशा, उनकी सामाजिक स्थिति, आदि का अन्य लेखकों नाटककारों ने भी बहुत सूक्षम वर्णन किया है |जैसे हबीब तनवीर का नाटक  ‘’ बहादुर कलारिन , भीष्म साहनी की कहानी ‘’ चीफ की दावत’’ प्रेमचंद की कहानी ‘’बूढ़ी काकी’’ विश्‍वंभरनाथ शर्मा कौशिक की कहानी ‘’ताई ‘’. चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘’ उसने कहा था ‘’ कमलेश्वर की कहानी ‘’ मांस का दरिया और राजा निरबंसिया ‘’’फणीश्वर नाथ रेणु का उपन्यास ‘’ मैला आँचल ‘’ शिवमूर्ति की कहानी ‘’ भरतनाट्यम , कुच्ची का क़ानून , सिरी उपमा जोग या अकाल दंड | ये अलग बात है कि उनकी कहानियों के दलित स्त्री को प्रमुखता से दर्शाया गया है |स्त्री अस्मिता उनकी कहानियों का अहम विषय रहा है
निर्मल वर्मा की ‘’ स्त्री’’ उपरोक्त कहानियों की स्त्री किरदारों से अलग हैं |वो न कोई क्रांतिकारी आव्हान हैं ना कोई दबी हुई शोषिता नारी |इसीलिये ये स्त्री मुक्ति आन्दोलन में मुखरता से अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करातीं लेकिन उनकी स्त्री केन्द्रित कहानियों में स्त्री का मनोविज्ञान का बहुत बारीकी से विश्लेषण किया गया है| जैसे उनकी ‘’ दहलीज’’ नामक कहानी किशोरावस्था की देहरी पर खडी लडकी की मनोदशा का वर्णन करती है तो ‘’ एक दिन का मेहमान ‘’ कहानी एक ऐसी बची की कहानी है जिसके माता पिता अलग हो चुके हैं और वो माँ के साथ रहती है |ऐसे तलाकशुदा माँ के साथ रहने वाले बच्चों की दशा का वर्णन है |
विदेशी कथाकारों/ नाटककारों में इन्तिज़ार हुसैन की कहानी ‘’ शहरजाद की मौत’’  स्टीफन स्वाइग की कहानी ‘’ Letter from an unknown woman ब्रेख्त के नाटक ‘’Caucasian chalk circle ‘’ और ‘’ Mother courage and her children ‘’,मेक्सिम गोर्की का उपन्यास / Mother ‘’ | मदर एक लाज़वाब उपन्यास तो है ही लेकिन इसकी खास बात ये भी है कि इस उपन्यास के प्रमुख चरित्र बेटा बोल्शेविक पावेल जो सर्वहारा है और उसकी माँ निलोवना ये दोनों चरित्र एक वास्तविक कहानी से लिए गए थे  जिनके वास्तविक नाम थे  प्योत्र अन्द्रेयेविच और आन्ना किरिलोवना ज़ालोमोव| दुनिया की पचास से अधिक भाषाओं में इसके सैकड़ों संस्करण निकल चुके हैं और करोड़ों पाठकों के जीवन को इसने प्रभावित किया है।लेनिन ने इस किताब के बारे में सही कहा था कि ‘’ये एक ज़रूरी किताब है क्यूँ कि बहुत से मजदूर सहज बोध से और स्वतःस्फूर्त तरीके से क्रान्तिकारी आन्दोलन में शामिल हो गये हैं, और अब वे माँपढ़ सकते हैं और इससे विशेष तौर पर लाभान्वित हो सकते हैं।यदि इन कहानियों के समक्ष कोई भारतीय लेखिका की कहानी ठहर सकती है तो वो है सिर्फ महाश्वेता देवी का बंगला में लिखा और हिदी में अनुवादित उपन्यास ‘’ हजार चौरासी की माँ ‘’
साहित्य, समाज का एक आइना होता है यह तो एक ब्रम्ह्वाक्य है ही लेकिन ये समाज को कितना, कैसे और कितने समय में परिवर्तित करता है सवाल ये भी महत्वपूर्ण है |बहरहाल बदलने की रफ़्तार कितनी ही धीमी हो , कितने ही विध्न आयें लेकिन कोशिशें जारी रहनी चाहिए | ये दिवस इतिहास के आकलन , निराशा या दोषारोपण की बजाय महिलाओं के प्रति आदर, और विश्व भर की उन महिलाओं जिन्होंने उपलब्धियां हासिल की हैं तथा हमारी कोशिशें कामयाब होंगी इस आशावादिता के सा समारोह पूर्वक और उत्सव के रूप में मनाया जाय इसका एक तरीका ये भी हो सकता है |
महिला दिवस की सभी को शुभकामनाएं  







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