24 नवंबर 2011

कुहास


औरत
 औरत होने से पहले एक जिस्म है,
जैसे बबूल एक पेड़
गंगा एक नदी
गाय एक जानवर
ह्त्या एक अपराध
जैसे अहिंसा एक झूठ
विडम्बना का कोई नाम नहीं होता
वो तो बस होती है
जैसे ,
बस होता है एक ज़न्म ,
कुछ नियति ,कुछ विवशताएं
सब अपना अपना इतिहास गढ़  
फ़ना होते हैं 

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