(1)
क्या बीत जाना होता है वैसा
जैसे बीतती है सभ्यता
पीढ़ियों की खाई में ?
जैसे बीत जाते हैं हुसैन
बेदखली को बेईज्ज़त छोड़
जैसे बीतती है संभावना
संस्कृति को बचाते हुए
या बीतती हैं उम्मीदें
इमोम की धडकनों में ?
(2)
कुछ अंश
बीत गई हूँ मै
और कुछ लम्हे बीत रही हूँ
देख रही हूँ बीतता हुआ खुद को
मा की गोद में बेवजह चीखने से होते हुए
वजह और चुप्पी के दरमियान |
बीत रही हैं उम्मीदें ख़्वाबों के चिन्ह छोड़कर
बीते हुए समय के इश्तिहारों को
देख रही हूँ घुटन की दीवारों से चिपके हुए
बीत रही हूँ मै
कतरा कतरा
तमाम प्रश्नों को अनसुलझा छोड़,
बीत रही हूँ मै......
achchhi kavitaen...
जवाब देंहटाएंतमाम प्रश्नों को अनसुलझा छोड़,
जवाब देंहटाएंबीत रही हूँ मै......
sunder ..sahaj abhivyakti ...
thanks aprna ji
जवाब देंहटाएंthanks anupmaa
जवाब देंहटाएंबीत रही हूँ मै
जवाब देंहटाएंकतरा कतरा
तमाम प्रश्नों को अनसुलझा छोड़,
बीत रही हूँ मै......
बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति...
बहुत सुन्दर रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ति,बधाई.
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चिंतन मनन कराने वाली रचना ..
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