9 जुलाई 2012

भ्रम


                    
दीवारें आजकल हो गई हैं इतनी पारदर्शी कि
देख लो उसमे किसी के दिल के आर पार
इतनी तरल कि छू लो
किसी के ज़ज्बात
इतनी रहस्यमयी कि इसमें घुस
ढूंढते फिरो निकलने के रास्ते
और गुम जाओं अपने ही भीतर  
और इस कदर निर्मम कि
चाहो जब तक छूना तुम किसी के अहसास
बदल दें वो अपना पृष्ठ
और खड़े दिखो किसी
दूसरे के आंगन की अनजान दीवारों के बीच|
नए युग के नए नवेले घर में ,
लिखना चाहों यदि अपनी ही दीवार पर अपना नाम
बहुत मुमकिन है कि
ऊपर किसी और के नाम की तख्ती टंगी पाओ
ये हमारा स्वयं का चुना हुआ भ्रम है  

5 टिप्‍पणियां:

  1. भ्रम तो भ्रम हा रहेगा, सम्यक दृष्टि तो विकसित ही करनी होगी।

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  2. लिखना चाहों यदि अपनी ही दीवार पर अपना नाम
    बहुत मुमकिन है कि
    ऊपर किसी और के नाम की तख्ती टंगी पाओ
    ये हमारा स्वयं का चुना हुआ भ्रम है
    बिल्‍कुल सही कहा ... बेहतरीन भावों का संगम

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  3. बहुटी खूब ... सार्थक ... सच है ये भ्रम ...

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  4. प्रवीण जी,संगीता जी,सदा ही ,नासवा जी आप सभी का आभार

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