खिड़की से आती हुई हवा में
फडफडा रहे हैं
मेरी मेज़ पर रखे कुछ कोरे कागज
सन्नाटों को भरते हुए अपनी रिक्तता में
घूरते हैं मुझको
कलम की नोक पर कांपती हैं
आत्मा
शब्दों की'
मै तैरा देती हूँ उन्हें स्मृतियों की नदी में
मै तैरा देती हूँ उन्हें स्मृतियों की नदी में
नौका बना
इस तरह
कूलों की अहमियत को
इज्ज़त बख्शती हूँ मै
कोरा घड़ा हो,कोरा यौवन या
फिर
कोरे पन्ने ही
कितनी जिजीविषा होती हैं
इनमे अपने
भरे जाने की ?
सपनों को रख दिया है मैंने
मौन की दहलीज़ पर
दीपक बना
बुझा दिया है लेम्प
खिड़की खुली है अब भी
पर कागजों में कोई हलचल
नहीं
सोती हुई मासूम कतरनों को पढ़ना
अच्छा लगता है मुझे
मासूम कतरनों को पढ़ना अच्छा लगता है..
जवाब देंहटाएंwah...
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