अभी अभी रात मेरे सिरहाने
आकर बैठी है
अभी ही चाँद को मेरी आँखों
ने छुआ है
अभी ही कोई रंगीन सपना नींद
के हाथों छूट
बादलों में उड़ा है
कोई तारा टूटा है
आसमान से अभी ही
तुमने कहा था एक दिन टूटते
तारे को देख
मांग लो जो मांगना चाहती हो
इससे
मैंने मांग लिया था तुम्हे
लेकिन सोचती रही थी देर तक
क्या टूटने में इतनी तासीर
होती है?
हर तारा अपने आसमान से छिटक
पत्थर ही तो हो जाता है लावारिस
,
लौटा देता है वो अपनी चमक
चाँद को
टूटने से पहले
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