30 अगस्त 2012


अभी अभी रात मेरे सिरहाने आकर बैठी है
अभी ही चाँद को मेरी आँखों ने छुआ है
अभी ही कोई रंगीन सपना नींद के हाथों छूट
बादलों में उड़ा है
 कोई तारा टूटा है आसमान से अभी ही 
तुमने कहा था एक दिन टूटते तारे को देख
मांग लो जो मांगना चाहती हो इससे
मैंने मांग लिया था तुम्हे
लेकिन सोचती रही थी देर तक
क्या टूटने में इतनी तासीर होती है?
हर तारा अपने आसमान से छिटक  
पत्थर ही तो हो जाता है लावारिस ,
लौटा देता है वो अपनी चमक चाँद को
टूटने से पहले

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