19 अगस्त 2011

सब्र



पेड़ कभी कुछ नहीं कहते
बस झरने लगते हैं पत्ते
 आसमान कभी नहीं चीखता 
बस रिसने लगते हैं बादल
नदियाँ जब नहीं हरहराती तो
सूखने लगती हैं बस यूँ ही
हांफती है प्रकृति बस 
आदमी के शोर से 



5 टिप्‍पणियां:

  1. गहन चिंतन से उपजी बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...!!

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद वंदना जी तेताला पर इस रचना को देने के लिए ! ,आपकी रचना मैंने कादम्बिनी में पढ़ी थी अच्छी लगी बधाई और शुभकामनाएं .....

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  3. बहूत सारगर्भित अभिव्यक्ति..

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  4. बहुत खूबसूरती से सबको खूबसूरत शबों को पिरोया बहुत ही सुंदर |
    सुन्दर रचना |

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