14 अगस्त 2012

उदासी



सुबह ,
खुली खिड़की पर आकर बैठ गई है
रात ,सुबह के झरने में 
अपना चेहरा धो रही है  
रजनीगन्धा ने अभी अभी अपनी सुगंध का
आखिरी कोना झरा है
बिलकुल अभी ही खिड़की से आकर
गौरैया फुदक कर
आ बैठी है मेज़ पर रखी सरस्वती की मूर्ति की
वीणा पर
चहक रही है वो हौले हौले
रोज की तरह
दुधमुही बयार ने अभी ही डुलाया है
माथे पर मेरे केशो का झुरमुट    
पर आज मै मुस्कुरा नहीं पा रही हूँ  
रोज की तरह
मन इन सब बह्लावों को देखकर भी 
उदास है
ना जाने क्यूँ ?
अरे हाँ याद आया
अभी अभी मैंने एक
अधूरी कहानी को खत्म किया है | 

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