9 जनवरी 2014

वजह

मेक्सिम गोर्की
दशकों पहले
क्यूँ लगा था तुम्हे कि
स्वार्थ का क्षरण और संवेदनाओं की हिफाज़त
प्रथ्वी को बचाए रखने की सबसे ज़रूरी
कोशिश है
मोपांसा
क्या दिखाई दिया था तुम्हे किसानों का भविष्य
नोरमंडी किसानों की आँखों में ?
नेली साख्स
क्या खोज रही थीं तुम
प्रकृति के रहस्य की कंदराओं में ?
प्रेमचन्द
क्यूँ तुम्हे लिखने पड़े अपनी कहानियों में
घीसू धनियाँ जैसे चरित्र
क्यूँ गुहार लगानी पडी खुदा के बन्दों को
अल्लाह की देहरी पर
क्यूँ नज़र आई हेमिंग्वे को अपने
सपनों के अंतिम सिरे पर मौत की बूँद ?
आसमान पर नज़र जाती ही नहीं टिकती भी तभी है
उखडने लगे हों पैर जब

अपनी ही ज़मीन से  

8 टिप्‍पणियां:

  1. काफी उम्दा प्रस्तुति.....
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (19-01-2014) को "तलाश एक कोने की...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1497" पर भी रहेगी...!!!
    - मिश्रा राहुल

    जवाब देंहटाएं
  2. आसमान पर नज़र जाती ही नहीं टिकती भी तभी है
    उखडने लगे हों पैर जब ......और---
    ---कब उखड़ते हैं पैर,
    जब बिना जमीनी सच्चाई को देखे
    सिर्फ आसमान की और देखता है मनुष्य ....|

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर प्रस्तुति
    नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ....!

    शुभकामनओं के साथ
    संजय भास्कर
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह ...कमाल की सार्थक रचना |

    जवाब देंहटाएं
  5. आप सभी का हार्दिक धन्यवाद दोस्तों

    जवाब देंहटाएं