मेक्सिम गोर्की
दशकों पहले
क्यूँ लगा था तुम्हे कि
स्वार्थ का क्षरण और संवेदनाओं की हिफाज़त
प्रथ्वी को बचाए रखने की सबसे ज़रूरी
कोशिश है
मोपांसा
क्या दिखाई दिया था तुम्हे किसानों का भविष्य
नोरमंडी किसानों की आँखों में ?
नेली साख्स
क्या खोज रही थीं तुम
प्रकृति के रहस्य की कंदराओं में ?
प्रेमचन्द
क्यूँ तुम्हे लिखने पड़े अपनी कहानियों में
घीसू धनियाँ जैसे चरित्र
क्यूँ गुहार लगानी पडी खुदा के बन्दों को
अल्लाह की देहरी पर
क्यूँ नज़र आई हेमिंग्वे को अपने
सपनों के अंतिम सिरे पर मौत की बूँद ?
आसमान पर नज़र जाती ही नहीं टिकती भी तभी है
उखडने लगे हों पैर जब
अपनी ही ज़मीन से
शीघ्र प्रकाश्य कविता
जवाब देंहटाएंकाफी उम्दा प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (19-01-2014) को "तलाश एक कोने की...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1497" पर भी रहेगी...!!!
- मिश्रा राहुल
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंसशक्त कविता।
जवाब देंहटाएंआसमान पर नज़र जाती ही नहीं टिकती भी तभी है
जवाब देंहटाएंउखडने लगे हों पैर जब ......और---
---कब उखड़ते हैं पैर,
जब बिना जमीनी सच्चाई को देखे
सिर्फ आसमान की और देखता है मनुष्य ....|
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ....!
शुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
वाह ...कमाल की सार्थक रचना |
जवाब देंहटाएंआप सभी का हार्दिक धन्यवाद दोस्तों
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