कहानी पढने का हुनर (एक
पाठक की द्रष्टि से )
कहानी /कवितायेँ पढ़ना न सिर्फ
एक कला है बल्कि एक प्रकार के आत्म संघर्ष से जूझना है |दोहरा संघर्ष जो एक साथ और
लगातार दो स्तरों पर मन के भीतर घटित होता है |...एक ,लेखक के द्वारा प्रस्तुत कथा,
घटनाओं ,शिल्प आदि को ग्रहण करना दूसरा
स्वयं पाठक द्वारा लेखक के उस ‘’लिखे’ से एतबार रखना ,उसे उसी रूप में स्वीकार
करना अथवा नकारना आदि |मोटे तौर पर कहानी का आकलन इस आकर्षण /विकर्षण पर आधारित
माना जाता है की कोई कहानी कितनी ‘’दूर’’ तक किसी पाठक को बांधे रखने में समर्थ है
|और जो कहानी स्वयं को अंततः अंत तक पढ़ा ले जाए वो भी बगैर किसी अतिरिक्त वैचारिक ,पूर्वाग्रही
दवाब के निस्संदेह वो कहानी श्रेष्ठ कहानियों में आती है || कभी कभी किसी एक कथाकार के कहानी संग्रह को पढने से
अधिक विभिन्न वैचारिक श्रेष्ठ पत्रिकाओं की अलग अलग लेखकों द्वारा लिखी चयनित
कहानियों को पढ़ना अधिक आकर्षक और वैविध्यपूर्ण प्रतीत होता है | विभिन्न नए पुराने
लेखकों की कहानियां /उपन्यास पढ़ना न सिर्फ सराहना बल्कि इस सबक का सीखना भी होता
है कि कथा लेखन में क्या नहीं होना चाहिए ,अच्छी भली कहानी कैसे गैर ज़रूरी लम्बे
लम्बे आख्यानों ,कविताई और कल्पनाओं (कहानी की प्रकृति/शिल्प/किस्सागोई के
मद्देनज़र )से अपना सहज सौन्दर्य खोने लगती है | कहानी को पढ़ते वक़्त अच्छी जगहों पर
‘’वाह’’ खुद ब खुद निकलती है वहीं कहीं २ पाठक को महसूस होता है कि जितने मनोयोग व्
श्रम से कहानी को शिल्प के साथ गूंथा गढ़ा गया है ... काश उतने ही हुनरमंदी के साथ
गैरज़रूरी दीर्घ आख्यान काटने की निर्ममता भी दिखाई होती तो कहानी क्या ही सुन्दर
हो जाती |
बिलकुल सटीक कथन...पाठक जब तक कहानी के पात्रों और घटनाओं से जुड़ाव महसूस नहीं करता, तब तक उस कहानी को सुन्दर कहना कठिन होगा...
जवाब देंहटाएंदिलबाग विर्क जी और कैलाश शर्मा जी आप दौनों का आभार
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