30 अक्तूबर 2015

दुःख और पीड़ा ऐसे शब्द हैं जो भौगोलिक सीमाओं में यकीन नहीं करते |संवेदनाएं और वेदनाएं सार्वभौमिक सत्य हैं | दुःख /पीड़ा पूरे संसार में एक सी होती है |कोई मुल्क ये दावा नहीं कर सकता कि हमारे यहाँ दुःख और पीडाएं फलां देश से कम हैं क्यूँ कि हम आधुनिक और विकसित राष्ट्र हैं |गौरतलब है कि चीन में कुछ महीनों पहले तक एक संतान का नियम था |दो संतान होने पर कड़ी सज़ा का प्रावधान था| इस संवैधानिक क़ानून ने वहां के सामाजिक जीवन को अस्त व्यस्त कर दिया था |कई पारिवारिक विडम्बनाओं/विसंगतियों ने लोगों को जीने /मरने की स्थिति तक ला दिया | पुलिस की बर्बरता की इंतिहा हो गयी |कई नागरिक दो बच्चे होने पर भय से सिंगापूर मलेशिया जैसे देशों में पलायन कर गए |  एक औरत जिसके पति ने अपने इकलौते तीन वर्षीय बेटे को धन के लालच में चीन में ही किसी को बेच दिया और भाग गया था |औरत अच्छी खासी नौकरी छोड़कर पुत्र की तलाश में जुट गयी |शहरों,पुलिस दफ्तरों के चक्कर,शरणार्थी शिविरों, अनाथालयों में मारी मारी फिरी और दाने दाने को मोहताज़ हो गयी |अंततः जब ग्यारह वर्षों बाद उसका बेटा पुलिस द्वारा खोज लिया गया और उसे सौंपा  गया तब उस नौजवान हो चुके बेटे ने माँ के साथ रहने से इनकार कर दिया क्यूँ कि उसे जहाँ बेचा गया था वो एक रईस परिवार था सर्व सुविधाओं सुविधाओं संपन्न |अतः अपनी भिखारिन माँ के साथ रहना बेटे ने खारिज कर दिया | इस घटना का  अंत ज्यादा त्रासद लगा जब उस माँ ने बेटे की इच्छा को सर्वोपरि रखते हुए खुशी २ बेटे को अपने घर से विदा किया और अब वो पूर्णतः संतुष्ट थी |वापस अपनी पुरानी नौकरी के लिए उसने आवेदन किया | (मेरी ये कहानी ‘’माँ’’ चीन के एक परिवार की इसी घटना पर आधारित है जो कुछ महीनों पहले ‘’पाखी’’ में प्रकाशित हुई थी )कल खबर देखी कि चीन से अंतत ये क़ानून हटा लिए गया है | खुशी हुई ... 

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