9 दिसंबर 2011

'यथार्थवादी कहानी के प्रणेता मोपांसा ''दूसरा भाग


1880 में लिखी गई कहानी ‘’चर्बी की गुडिया’’जिसे तब ही नहीं आज भी लेखक/आलोचक उनकी सर्वश्रेष्ठ कहानी मानते हैं !यह कहानी ज़र्मनी के कब्ज़े वाले शहर से बचने के लिए एक घोडा गाड़ी में यात्रा कर रहे विभिन्न वर्ग,स्वभाव, रहन सहन वाले कुछ स्त्री पुरुष और उनके साथ ही यात्रा कर रही एक महिला एलिजाबेथ रूसो की है ,जिसकी सामाजिक छवि ठीक नहीं है!इस कहानी में प्रिशियाई आतंक ,सामाजिक वर्गों की भावनात्मक-संवेगात्मक रिक्तता ,संवेदन हीनता और स्वार्थपरकता का चित्रण किया गया है!
1880  से  1891 तक का समय मोपांसा के लेखन कार्य का सर्वश्रेष्ठ काल कहा जा सकता है!1883 में मोपांसा के दो कहानी संकलन मद मोजाल फीफी और हंस के किस्से प्रकाशित हुए !और पहला उपन्यास ‘’इउन वी’’(A Woman’s life)प्रकाशित हुआ !इस उपन्यास में उन्होंने एक निरीह असुरक्षित स्त्री की कहानी के माद्ध्यम से मानवता की त्रासदी को वर्णित किया है !1890 तक उनके पांच और कहानी संग्रह प्रकाशित हुए !फ्लाबेयर,जोला,तुर्गनेव और टोलास्तोय उसके जबरदस्त प्रसंशक थे !उनके बारे में कहा जाता है कि फ्रांसीसी लोगों के जीवन और मनोविज्ञान पर मोपांसा की  गहरी पकड़ थी !सधी हुई संप्रेषणीय भाषा ,उनकी रचनाओं में धूर्त क्लर्कों,पियक्कड नाविकों,कंजूस किसानों,के जीवन की वास्तविकताओं,रिक्तता ,का चित्रण वास्तविकता से भी अधिक वास्तविक रूप में किया गया है !मनुष्य जीवन के छोटे बड़े सरोकारों को आरपार देखने की द्रष्टि है उनकी !मोपांसा की कहानियों में जीवन का कटु सत्य विशेषरूप से उभर कर आया है ! कहानी संग्रह ‘’कलेर द ल्यून ‘’और ‘’मिस हैरियट’’ तक आते आते मोपांसा की कृतियाँ फ्रांस में ‘’बेस्ट सेलर’’ बन चुकी थीं !
समाज में व्याप्त वर्ग –संघर्ष ,तथा इसी अनियमितता से उपजे ‘’इनफीरियारिटी’’ अथवा  ‘सुपीरियरिटी कोम्प्लेक्स ,सामाजिक छवि कायम करने के लिए दिखावे और उन दिखावों  के कारन जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा तनाव ग्रस्त होना ,यही दिखाया गया है उनकी कहानी ‘’हीरों का हार’’में !दरअसल ये कहानी मध्यम वर्ग में व्याप्त कुंठाओं को उजागर करती है !नियति के फेर में एक सुन्दर महत्वाकांक्षी स्त्री का एक साधारण क्लर्क से विवाह हो जाता है ,और किसी सभ्रांत और विशिष्ट व्यक्ति की पार्टी में जाने के लिए वो पति से एक महंगी पोशाक,जो उसका पति उधार पैसे लेकर खरीदता है बनवाती है !अपनी घनिष्ट अमीर मित्र से अत्यंत मंहगा हीरों का हार ‘’कल तक वापिस कर देने’’ का कहकर ले आती है,जो उस पार्टी में खो जाता है !फिर उस बेहद महंगे  हीरे के हार को उसे वापस करने के लिए किन- किन दुर्दम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है पति पत्नी को ,इन कुपरिस्थितियों और संघर्ष से जूझते हुए पिछले दस सालों में उनकी आर्थिक और शारीरिक स्थिति की क्या दुर्दशा होती है ?इसका कारुणिक  वर्णन है इस कहानी का अंत चौंकाने वाला और त्रासद है !
मोपासा को ‘’Father of short stories’’भी कहा जाता है!1881 में लघु कथाओं का पहला संस्करण आया !मोपासा की कहानियों में कल्पना –शक्ति ,अंतर्द्रष्टि,और यथार्थ बोध बहुत गहरा होता है! अर्नेस्ट हेमिंग्वे व ,चेखव ने ज्यादातर प्रतीकात्मक कहानियां लिखीं वहीं आधुनिक कहानी में फेंटेसी की शुरुआत जर्मन लेखक काफ्का  से मानी जाती है!मोपासा की कहानियों की ये विशेषता थी कि उन्होंने यथार्थवादी और फंतासी दोनो प्रकार की कहानियां लिखीं !मोपासा फ़्रांसिसी साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की आखिरी कड़ी थे जिन्होंने उस श्रंखला के शीर्षस्थ लेखक बाल्जाक और स्तान्द्हल की समृद्ध परंपरा को ही आगे ले जाने का काम किया !
 ‘’रस्सी का टुकड़ा’’एक अत्यंत मार्मिक कहानी है !एक बूढ़े किसान को मेले में जाते वक़्त एक रस्सी का टुकड़ा ज़मीन पर पड़ा हुआ मिलता है !उसकी पीठ में बेहद पीड़ा होने के बावजूद वो उसे उठा लेता है ये सोचकर कि कौन सी चीज़ कब काम आ जाये !उस रस्सी के टुकड़े को उठाते हुए उसका एक पुराना दोस्त जो अब शत्रु था देख लेता है !उसके दूसरे  दिन ही एक धनी व्यक्ति का रुपयों से भरा बटुआ उसी सड़क पर खो जाता है ! धनी व्यक्ति उस बूढ़े किसान को बुलवाता है ,तब किसान को पता चलता है कि उस व्यक्ति जिसने उसे रस्सी उठाते हुए देख लिया था और जो उसका अपमान चाहता था उसी ने शिकायत की है !बूढा तरह तरह से अपने को निर्दोष साबित करने की कोशिश करता है जेब से रस्सी का टुकड़ा निकाल कर दिखाता है,कसमे खाता है ,लेकिन उसकी बात कोई नहीं मानता,और उसे दोषी करार दे दिया जाता है !फैलते फैलते  ये बात पूरे गाँव में फ़ैल जाती है और लोग उसे उलाहने देने लगते हैं उसे कोसते हैं !वो खुद को सिद्ध करना चाहता है कि वो निर्दोष है, पर कोई उसकी बात नहीं सुनता !बाद में वो बटुआ किसी अन्य व्यक्ति को सड़क पर पड़ा मिल जाता है और वो उस धनी  आदमी को सौंप देता है इसके बावजूद भी लोग उस बूढ़े किसान पर  विशवास नहीं करते ,उसका मजाक उड़ाते हैं ,उससे घृणा करते हैं और अंत में असमय ही वो यही बडबडाता हुआ मर जाता है कि ‘’मैंने बटुआ नहीं लिया था ‘’!
कहानी ‘’ज़िंदा मछलियाँ ‘’वस्तुतः एक क्रूरता और भोलेपन या एक ताकतवर और एक कमज़ोर नस्ल की कहानी है !पेरिस पूरी तरह प्रुशियाई लोगों के कब्ज़े में था !स्थितियां बेहद खराब थीं लोग भूखों मर रहे थे !पूरे समाज में घनघोर अराजकता व्याप्त थी !एक घडीसाज़ जिसका नाम मोरिसात था और जो मछली पकड़ने का बेहद शौक़ीन था ,अपने मित्र सौवेज़ के साथ रोज टीन का डिब्बा और मछली पकड़ने का जाल लेकर नदी किनारे  जाते, और घंटों मौन या बात करते हुए वे दोनो बैठे मछली पकड़ा करते !ज़र्मन सैनिक जनता पर अत्याचार कर रहे थे स्थितियां दुष्कर थीं और जाहिरतौर पर मछली पकड़ने में व्यवधान भी !वो दौनों मित्र ,मछली पकड़ने के जूनून जो उनकी आदतों में शामिल हो चूका था, का लोभ संवरण नहीं कर पाते और जाल और डिब्बा लेकर दुश्मनों से छिपते छिपाते पहुँच जाते हैं उस नदी के किनारे जहाँ  दुश्मनों का डेरा था !बहुत दिनों बाद अपनी पुरानी जगह पर पहुँच जाने पर उन्हें अवर्णनीय खुशी होती है और सरकंडे के पेड़ों के बीच छिपे हुए वे मछली पकड़ने का जाल बिछा देते हैं,और अत्यंत प्रसन्न होते हैं !पर कुछ समय बाद ही उनको दुश्मनों द्वरा पकड़ लिया जाता है !उनसे कुछ खास बातें पूछी जाती हैं जिनसे वो अनभिग्य होते हैं और तब उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया जाता है और उसी नदी में उनकी टांग और हाथ पकड़कर निर्दयता पूर्वक फेंक दिया जाता है !अंत में कर्नल जिंदा तडपती मछलियों जो उन्होंने पकड़ीं थीं को देखकर कहता है ‘’इन्हें ऐसे ही ज़िंदा फ्राय करके लाओ!
 ‘’हीरों के हार ‘’में जहाँ विभिन्न सामाजिक वर्गों की  भावनात्मक –संवेदनात्मक समस्याओं से उपजी कुंठा और विसंगति का दिग्दर्शन है वहीं ‘’रस्सी’’कहानी में नोर्मन किसानों के जीवन से जुडी व्यथा –कथा जो ,तथा समाज में व्याप्त अराजकता झूठ और संवेदन शून्यता को दर्शाता है !’’चर्बी की गुडिया’’में नौकरशाही ,स्वार्थपरकता संवेदनहीनता बुर्जुआ समाज के निजी जीवन में नैतिकता का अभाव ,अनुभूतियों और रिश्तों का खोखलापन एवं संबंधों में पाखंड जैसी सामाजिक विसंगतियाँ उजागर होती हैं तो ‘’ज़िंदा मछली’’में फ्रांस-जर्मनी युद्ध विषयक विसंगति , प्रुशियास का आतंक,वहशीपन क्रूरता और बर्बरता का वर्णन है !
मोपासा के समकालीन रुसी लेखक गोर्की के कुछ उपन्यासों में विषयात्मक साम्यता द्रष्टिगत होती है उल्लेखनीय है कि 19 वीं शताब्दी के अंतिम चरण में गोर्की ने तीन उपन्यास लिखे थे ‘’मेरा बचपन ‘’मेरे विश्वविद्यालय’और जीवन की राहों पर’’ इन तीनों आत्मकथात्मक उपन्यासों की प्रष्ठभूमि एतिहासिक है!इन्ही विसंगतियों और बर्बरता का वर्णन करते हुए ‘मेरा बचपन’ में एक जगह वो लिखते है ‘’मै अपनी नहीं उस दमघोंट और भयानक वातावरण की कहानी कहने जा रहा हूँ जिसमे साधारण रुसी अपना जीवन बिताता था और बिता रहा था !’’ये उपन्यास ,कहानियां एक ऐसा इतिहास है जिनसे हमारी आँखों के सामने उनका समूचा युग चलचित्र की भांति उभरता चला आता है!नाइजीरियाई लेखक चिनुआ अचीबे कहते हैं ‘’जब हम किसी कहानी को पढते हैं ,तो हम केवल उसकी घटनाओं के द्रष्टा ही नहीं बनते, उस कहानी के पात्रों के साथ हम तकलीफों में भी साझा करते हैं !’’
 तुर्गनेव और फ्लाबेयर मोपासा के जबरदस्त प्रसंशक थे !यही वो समय था जब आधुनिक कहानी के प्रणेता चेखव ने प्रतीकात्मक कहानियां लिखीं! मोपासा की अंतिम समय में लिखी गई रचनाओं में उनकी सर्जनात्मक क्षमता का निरंतर ह्वास हो रहा था तथा मानसिक दशा  बदतर हो रही थी !अवसादित क्षणों में उन्होंने आत्म हत्या करने की भी कोशिश की थी ,लेकिन उन्हें बचा लिया गया था !6 जुलाई 1893 को अपने तेंतालीस्वें ज़न्म दिन के कुछ पहले ही उनकी म्रत्यु हो गई! मोपांसा को पूरे विश्व में अब तक का सर्वश्रेष्ठ फ्रांसीसी कथाकार माना जाता है
By
Vandana shukla 




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