तन्हाई ने लिखा मौन /और मै भाषा हो गई
पढ़ा जिसे मेरी आँखों ने
आस्मां ,नदी ,पेड़ और जंगल की
निस्पंद देह पर
छुआ गया उँगलियों की ज़ुबान
पीले निरीह ताड़ पत्रों पर
भाषा का ना कोई सुख होता है ना दुःख
ना निराकार ना साकार
वो बस जीती है एक सीप में
बरसों बरस खुद को भूल जाते हुए
समुद्र का एक हिस्सा बनकर
जिसे फेक दिया गया हो
नकार देने की हद तक हाशियों पर |
समुद्र में पड़ती चाँद की परछाईं सी
कांपती है जो अपने ही भीतर
धूप से ही नहीं ,पिघलती हैं चट्टानें
बारिश और चांदनी में भी
रेत को भिगोती लहरों का संगीत
बारिश की बूंदों और पत्तों की लयबद्ध सिहरन
या हो प्यार ही ,
शब्दों की निरस्ती की छुअन है
मेघ गर्जन या बारिश की बूँदें
बादलों के तिलस्मी रूप
शब्दों की मोहताजी से पीठ है जिनकी
तन्हाई ने लिखा मौन /और मै भाषा हो गई
जवाब देंहटाएंपढ़ा जिसे मेरी आँखों ने...
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gahan bhavon ki sundar abhivyakti.
नववर्ष की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
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