21 दिसंबर 2011


अर्थों ने बदल लिया है खुद को
नए ज़माने की पोशाक की तरह
आदमी को मशीन और आग को बर्बादी कह दो तो भी
अर्थ नहीं बदलते इनके
मशीन में तब्दील होते हुए , आदमी के लिए
पुर्जों की अहमियत पेड़ से अधिक है अब
मशीने जो सिर्फ आग उगलती हैं
धमाकों से अलग भी ,
 बेइंतिहा शोर रचती हैं ये
सुलगते मौन के भीतर भी,
कुछ नहीं दिखाई देता ,ना कुछ सुनाई
 सभ्यता की नई परिभाषा में  
वो आग अब बुझ चुकी है 
अग्नि कहकर जिसकी परिक्रमा की जाती थी
हजारों संतानें गवाह है इसकी ,या
लिपे चूल्हे की गोद में अंगारों पर सिंकी रोटी की
अपनापे की गंध  
अब आग के मायने सिर्फ
दिल से लेकर चिता तक धधकती वस्तु रह गई है
और पानी के ,एक सूखी नदी की दरारें
हवा के,एक दमघोट धुआं |
और धुंए के मायने  ..एक युग

3 टिप्‍पणियां:

  1. ek lambe samay k baad aapka blog padha. kuch samay k liye apni hi ek duniya me kho gayi thi main aisa laga, jab ye sab padha to yaad aaya duniya me kitna kuch galat ho raha hai. meri hi tarah shayad har koi khoya hua hai apni ichhaon ki duniya me or bhul gya hai ki ye duniya wo nahi jo hum dekhna chah rahe hain ye wo ban rahi hai jisse kuch samay baad shayad hum dekhna bhi chahein to na dekh payein.

    Bahut achha likha hai hamesha ki hi tarah. :)

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