22 मई 2013

देर रात


देर रात तक मैं
स्म्रतियों की सीढ़ी उतरती रही
अतीत के तहखाने में पहुंचकर
अँधेरे आलों में से उतारे
उम्र के कुछ धूल धूसरित साल
खोलकर उनकी तहों को सूंघा,
धूल को झाड़ा  
आँखों से लगाया उन्हें
मलालों के गीले हिस्सों पर
फिराईं अपनी उंगलियाँ
कोने में रखी बुझी मोमबत्ती को
जलाया फिर से
तमाम द्रश्य आँखें मींडते हुए उठ बैठे
मुझे मेरे घर पहुंचा  
सीढियां फिर उतर गई थी अपने तहखानों में
तीखी रोशनी की चकाचौंध गाढे अंधेरों से ज्यादा गहरी थी अब
ख़ूबसूरत केंडल स्टेंड पर रखी मोमबती
बहुत उदास थी  

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