13 नवंबर 2013

यथार्थवादी कहानी के प्रणेता ....मेक्सिम गोर्की


नोबेल पुरूस्कार तमाम आरोपों विवादों  के बावजूद आज भी विश्व के सर्वोपरि सम्मानीय पुरुस्कार हैं |नोबेल पुरुस्कार प्राप्त अनेक विजेताओं का बचपन और किन्ही किन्ही का तो पूरा जीवन ही कष्टों व् संघर्षों में बीता ,इनमे से कुछ अपनी पारिवारिक प्रष्ठभूमि के कारण संघर्षरत रहे और कुछ तत्कालीन सामाजिक  राजनैतिक विसंगतियों की वजह से इनमे से इम्रे कर्तेज़,गोर्की,मोपांसा आदि प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध की भयंकर त्रासदी से होकर गुजरे |और जब उसकी असहनीयता और दुर्दशा ने उन्हें विचलित कर दिया यही विचलन उनके उपन्यास कहानियों कविताओं आदि में दरपेश/प्रकट हुआ |साहित्य की अनेक विधाएं ,विचारधाराएँ ,सोच ,विषय अपनी उत्क्रश्तता के शिखर पर सिर्फ एक ही प्रयोजन के फलस्वरूप पहुँचती हैं वो है सम्पूर्ण मानव जाति से सरोकार और संभावनाएं न की अपने समाज अपने देश और अपनी समस्याओं गुण दोषों का प्रकटीकरण रुदन या चिंता (कालजयी साहित्य इसका साक्षी है )|इनमे से कुछ साहित्यकारों का जीवन चरित सुनकर तो आश्चर्य होता है जैसे १९७४ के नोबेल पुरूस्कार विजेता स्वीडिश कवी हैरी मार्टिनसन जिनकी माता अपने पति का देहांत होने के बाद अपने छः बच्चों को बेसहारा छोड़कर अमेरिका चली गईं | हैरी का बचपन अनाथालयों में गुजरा वहीं १९९९ के विजेता जर्मन उपन्यासकार गुंथर ग्रास भी महायुद्ध की घटनाओं के साक्षी रहे उन्होंने अपने कई उपन्यासों में इन्ही त्रासदियों को विषय बनाया |उनका उपन्यास ‘’कैट एंड माउस डॉग ईयर्स आदि हैं |‘’,डॉग इयर्स,तो बिलकुल अनोखा ही उपन्यास है जिसमे कोई एक केन्द्रीय पात्र न होकर सिर्फ आवाजें हैं सपने हैं लेकिन सबसे अधिक प्रसिद्धि उन्हें अपने उपन्यास ‘’दि तिन ड्रम’’ के लिए मिली इसे जर्मनी में एक नया युग आरम्भ करने वाला उपन्यास कहा गया |इसके अलावा पुर्तगाली विजेता कवी/लेखक जोस सारामागो,रूसी साहित्यकार मिखाइल शोलोखोव (१९६५)|यद्यपि संघर्षों से गुजरना और उसी पर रचना करना किसी साहित्यिक सच्चाई या विशेषता /उत्क्रश्तता को नहीं सिद्ध करता |जैसे फ्रांस के रोजे मारते दुगार,चर्चिल आदि लेखक संपन्न परिवारों से वास्ता रखते थे लेकिन इन सभी में जो एक समानता है वो यही है कि इनके सरोकार मानवता के पक्षधर रहे |
मेक्सिम गोर्की जिनका बचपन का नाम अलेक्सेई पेश्कोव था एक मोची के बेटे थे |कहा जाता है की बचपन में वे अपने पिता के साथ मोची का काम सीखा और उन्हें करते देखते रहते थे |उसी बीच में एक कागज पर कलम से कुछ लिखते भी जाते और उसे घर ले जाते |पढने की अटूट इच्छा लिए जब वो सोलह वर्ष की आयु में कजान आये लेकिन जो भविष्य और द्रश्य वो आँखों में भर यहाँ आये थे उनसे बिलकुल उलटा माहौल देखा |और उन्हें यहाँ बेकरी मजदूर और बेहद कठोर जीवन में रहने को विवश होना पड़ा |मेरे विश्व्विद्ध्यालय इन्हीं घटनाओं व् सच्चाइयों से परिपूर्ण एक आत्म कथात्मक उपन्यास है |दरअसल उन्होंने तीन आत्मकथात्मक उपन्यास लिखे जिनमे ‘’माय चाइल्डहुड ,माय यूनिवर्सिटीज़ प्रमुख हैं |इन तीन उपन्यासों में गोर्की का स्वयं का व्यक्तित्व ,तत्कालीन परिस्थितियाँ ,एतिहासिक प्रष्ठभूमि आदि को जानने में मदद मिलती है |यद्यपि ये सारी सामाजिक राजनैतिक आदि घटनाएँ उनके अपने जीवन के आसपास ही घूमती  हैं और उन्हीं से सम्बंधित भी हैं लेकिन ये सिर्फ उनके ‘’आत्मकथा’’ के अलवा भी तमाम आर्थिक सामाजिक राजनीति स्थितियों व् समस्याओं का लेखा जोखा भी हैं जो पाठक की आँखों में एक द्रश्य बंध की तरह खिंचती चली जाती हैं | यही उनकी आत्मकथा की सबसे बड़ी कलात्मक खूबी भी है | ग्रीनवुड.वाल्जाक ,सर वाल्टर स्काट उनके प्रिय लेखक थे गौरतलब है की वो निरंकुश ज़ार का शासन था |जिन क्रांतिकारियों व् जनवादियों ने इसकी खिलाफत की ,उनके अगले दशक में नारोद्वादियों ने उसे एक नई क्रान्ति का रूप दे दिया |नारोद्वादियों की ये विशेषता थी कि वो दबे कुचले सामाजिक और राजनैतिक स्थिति से कमज़ोर किसानों के तरफदार थे और उन्हें आदर्श मानते थे |कहना गलत न होगा की मार्क्सवादी विचारों को इससे मदद मिली ताक़त मिली |अंत में लेनिन के नेतृत्व में ये आन्दोलन विजयी हुआ |गोर्की की रचनाओं की प्रष्ठभूमि भी प्रायः इसी इतिहास के इर्द गिर्द घूमती है और ये नितांत स्वाभाविक भी है |इन् तीनों उपन्यासों में से मेरे विश्वविध्यालय सबसे आख़िरी में लिखा गया तब तक स्थितियां बदल चुकी थीं |क्रांतिकारियों जनवादियों के बाद न्रोद्वादियों का वर्चस्व भी अंतिम सांसें गिन रहा था जिसका स्थान मार्क्सवादी विचारों ने ले लिया था |रूस में एक नए नायक का जनम हो रहा था जिसका ज़िक्र या भूमिका गोर्की अपने उपन्यास द मदर में पहले ही कर चुके थे |कहा जाता है की लेनिन को गोर्की का उपन्यास माँ इतना पसंद था की उन्होंने गोर्की से कहा था की ‘’माँ जैसी कोई चीज़ लिखो और बाद के ये तीनों उपन्यास जैसे लेनिन की इच्छा पूर्ति ही थे |
गोर्की की ‘ द मदर ’’और प्रेमचन्द का ‘’गोदान दौनों अम्र कृतियाँ हैं |माँ अब केवल पालभेंन की ही माँ नहीं थी बल्कि ऐसे असंख्य बेटों की माँ थी जो सत्य की राह पर चलने वाले अहिंसावादी और इमानदार सिपाही रहे |
यद्यपि गोर्की ने भी अपने ‘समय’ की विसंगतियों को अपनी रचनाओं विशेषतौर उन तीन आत्मकथात्मक उपन्यासों के माध्यम से लिखा है लेकिन वो प्रेमचंद और मोपांसा से इन मायनों में अलग कहे जा सकते हैं कि उनकी कहानियों या उपन्यासों में न सिर्फ सर्वहाराओं की दुर्दशा कठिन परिस्थितियों का वर्णन है बल्कि उनकी ठोस वजहें और सामाजिक और व्यक्तिगत स्तरों पर हल करने के नुस्खे भी हैं |इस लिहाज़ से कहा जा सकता है कि गोर्की विचारों व् एक द्रष्टि से भविष्य के प्रति आशावादिता के पक्ष में प्रेमचंद से कुछ आगे की सोचते हैं |संभवतः उनकी इस सोच की एक वजह उनकी मार्क्सवादी विचारधारा भी हो सकती है | इस ‘’आधुनिकता और आशावादिता ‘’ के चलते गोर्की ने सकारात्मक पक्ष की दिशा में जिस पर सर्वाधिक जोर दिया है वो है अपना व्यवहारिक और सैद्धांतिक ज्ञानवर्धन |
गोर्की को पुस्तकें पढने के लिए प्रेरित करने वाला जहाज का एक बावर्ची है ‘’स्मुरी ‘’जिसका ज़िक्र गोर्की ने ‘’जीवन की राहों में ‘’में किया है |वो कहता है ‘’तुम्हे किताबें पढनी चाहियें किताबें फ़िज़ूल की चीज़ नहीं होतीं |उनसे बड़ा साथी और कोई नहीं होता ‘’|वो कहते हैं ‘’किताबों ने मेरे ह्रदय को निखारा ..उन खरोंचों को निकाला जो मेरे ह्रदय पर अपने गहरे निशाँ छोड़ गए थे,अब मुझे लगता है कि दुनियां में मैं अकेला नहीं हूँ मेरे साथ और भी कोई है ‘’|गौरतलब है कि उस समय लोगों को पुस्तकों से अधिक से अधिक दूर रखा जाता था,यह कहकर कि पुस्तकें खतरनाक होती हैं |ये सब अफवाहें जारशाही द्वारा फैलाई जाती थीं इसी से ये साबित होता है की जारशाही साहित्य से कितना घबराती थी (क्रमशः )
वंदना 











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