एक याद चुपचाप गिरती
रही
बारिश की तरह रात भर
भीगते रहे तमाम
द्रश्य उसमे
मैंने कमरे की खिड़की
का पर्दा खिसकाया
अंधेरों ने राहत की
सांस ली
अँधेरे ,जो बैठे थे
न जाने कबसे
उस पार
उस याद की ऑंखें
किसी याद की तरह
उदास थीं
मैंने ठीक किया उस
का
कादिया-रदीफ़
याद ने कहा
तुम बहुत दिनों से
नहीं आईं
इसलिए मैं ही चली आई ‘’
बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुषमा जी
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