5 नवंबर 2013

याद

एक याद चुपचाप गिरती रही
बारिश की तरह रात भर
भीगते रहे तमाम द्रश्य उसमे
मैंने कमरे की खिड़की का पर्दा खिसकाया
अंधेरों ने राहत की सांस ली
अँधेरे ,जो बैठे थे न जाने कबसे
उस पार
उस याद की ऑंखें किसी याद की तरह
उदास थीं
मैंने ठीक किया उस का
कादिया-रदीफ़
याद ने कहा
तुम बहुत दिनों से नहीं आईं 

इसलिए मैं ही चली आई  ‘’ 

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