संबंधों
की भीड़ में
एक
अकेली स्मृति
किसी घनेरे
दरख्त की
सबसे
ऊँची शाख पर अटकी
वो
क्षत-विक्षत पतंग
अपने
ही वजूद का ढाल बनी
जिद्द
का हौसला लिए
जूझ
रही है
तूफानी
हवाओं से
बरसाती
थपेड़ों से
भदरंग
से लेकर
चिंदी
चिंदी होने तक ...
अपने
अपनों से बहुत दूर तक
उखड़ी
सांस को बचाए
हालाकि
तुम
असफल कलाकार निकले
लेकिन
‘’जीवन
बचे रहने की कला है’’
सच
कहा था तुमने नवीन सागर !
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बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......
जवाब देंहटाएंbahut dhanywad sushma ji
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