चिंतन
कवितायेँ और कहानियां
11 दिसंबर 2013
अति
शब्दों की हो या लोगों की
अंततः भीड़ ही होती है
आसक्ति का जोड़-घटाव
सपनों या जीवन में
हमेशा शून्य आता है
असंतोष के विकट मौन में
ध्वनियों की घुटी हुई भाषा
प्रथ्वी का सबसे भीषण कोलाहल है
1 टिप्पणी:
प्रवीण पाण्डेय
16 दिसंबर 2013 को 9:24 pm बजे
कम शब्दों में गहरी बात, एक लक्ष्य।
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कम शब्दों में गहरी बात, एक लक्ष्य।
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