7 अगस्त 2011

फैसला


लकीर के समानांतर एक अलग
दुनियां का ख्वाब खींचती 
इस नई पौध की हवा
लग गई नींद को मेरी ,और उसने
‘रात’ को ‘’भ्रम’’
कहकर नकार दिया आँखों को !
अलावा उसके वो
भरी रही आँखों में ,एक ठसक के साथ
शेष समयों और अजीब जगहों पर 
‘अपवाद’ का दंभ ओढ़े  .... 
सहमे ठिठके से दूर बैठे सपनों को
 आमंत्रित किया है मैंने
सूनी आँखों में रंग भरने के लिए
क्यूँ कि मै तोडना चाहती हूँ दंभ नीद का
क्यूँ कि मै चाहती हूँ एक इतिहास रचना
उन सपनों से ,
नींद जिनकी मोहताजी नहीं ..!

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