इन दिनों .....
मन का आकाश सहसा सिकुड़ने लगा है
क्षितिज ने हटा ली है अपनी टेक
या धरती दरकने लगी है?
कुछ तो हुआ होगा ....
चेहरों पर भी कुछ बदला बदला सा है
नाक आँख होंठ सब अपनी जगह होने पर भी
क्या है जो बदल जाता है रोज चेहरों में ?
घायल आत्मा के ठीक पास रखा चाक़ू
गंध है जिसमे विशवास के ताज़े खून की
उम्मीदें सिमट रहीं हैं सांसों में
जैसे पूरी प्रथ्वी धडक रही हो
दिल में मेरे ...!
dardnak murder.
जवाब देंहटाएंजज़्बात को बखूबी लिखा है
जवाब देंहटाएंअनामिकाजी ,आप फरीदाबाद से हैं ,यानी हरियाणा?खैर शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना , बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंdhanywad shukla ji
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