8 अगस्त 2011

कुछ बदला सा .



इन दिनों .....
मन का आकाश सहसा सिकुड़ने लगा है
क्षितिज ने हटा ली है अपनी टेक
या धरती दरकने लगी है?
कुछ तो हुआ होगा ....
चेहरों पर भी कुछ बदला बदला सा है
नाक आँख होंठ सब अपनी जगह होने पर भी
क्या है जो बदल जाता है रोज चेहरों में ?
 घायल आत्मा के ठीक पास रखा चाक़ू  
गंध है जिसमे विशवास के ताज़े खून की
उम्मीदें सिमट रहीं हैं सांसों में
जैसे पूरी प्रथ्वी धडक रही हो
दिल में मेरे ...!

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