4 अगस्त 2011

तलाश


ये जिंदगी एक क्रियोल ही तो है
जैसे एक साल में कई साल   
जैसे एक रात में कई रातें
जैसे एक बूंद आँसू में
असंख्य पीडाएं
जैसे एक प्रेम में
कई अतीत
 अतीत जो अटे पड़े हैं
लड़ने से पहले हारे हुए लोगों से
जब भी किसी मज़बूत दीवार के सहारे
छांह चाही गई
दीवार को खुद धूप से
लथपथ  पाया !

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर रचना, खूबसूरत अंदाज़

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  2. और यह तलाश जारी रहेगी ...अच्छी प्रस्तुति

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  3. खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. शुक्रिया यशवंत जी ''चिंतन''पर आने और प्रोत्साहन के लिए ...अच्छा लगा

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