ये जिंदगी एक क्रियोल ही तो है
जैसे एक साल में कई साल
जैसे एक रात में कई रातें
जैसे एक बूंद आँसू में
असंख्य पीडाएं
जैसे एक प्रेम में
कई अतीत
अतीत जो अटे पड़े हैं
लड़ने से पहले हारे हुए लोगों से
जब भी किसी मज़बूत दीवार के सहारे
छांह चाही गई
दीवार को खुद धूप से
लथपथ पाया !
सुन्दर रचना, खूबसूरत अंदाज़
जवाब देंहटाएंऔर यह तलाश जारी रहेगी ...अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
thanks Dorothy:)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसादर
dhanywad sunita ji
जवाब देंहटाएंशुक्रिया यशवंत जी ''चिंतन''पर आने और प्रोत्साहन के लिए ...अच्छा लगा
जवाब देंहटाएं