आईना था एक मेरे घर में
लगभग मेरी ही उम्र का
माँ यही कहती थीं ....
कहती थीं कि वो जब
मुझे नहला धुला आँखों में काजल और
माथे पर काला नजरौठा लगा ,
लिटा देती घर के आंगन में खटिया पर ,
और दिखाती थीं आईना मुझे
मै किलकारियां भरती ,किसी और को
खिलखिलाता देख आईने में !
फिर बड़ा होने लगा मेरे साथ साथ आईना भी
स्कूल जाने से पहले ,युनिफोर्म चैक करता
झुककर पैरों में पहने मोज़े और पोलिश किये जूते देखता
फटकारता आँखों के फैले काजल और
एक दो बाल के बिखरने पर
संवारता उन्हें ....
अचानक एक दिन सुबह
आईने में इन्द्रधनुष खिल गया
और भीतर मै....
देह पर रंग बिखरने लगे
वो और भी खूबसूरत दिखने लगा ...
खिलखिलाता हुआ ...
मेरे साथ गुनगुनाते,
थिरकते मुस्कुराते हुए
गाहे ब गाहे पर्स से झांकता
कॉलेज के फ्री पीरियड में,
बीच बाजार में,
सिनेमा हौल के वॉश रूम में,
होस्टल के कॉमन रूम में .....
किसी के ‘’देखने ‘’से पहले
किसी के ‘’देखने’’ के बाद
बात करते हम फुसफुसाते हुए ...
उसने ही देखी थी सफेद होती कनपटी
सबसे पहले
आँखों के नीचे उगती महीन झुर्री
और अंदाजी थी अपनी उम्र..
खुद के चेहरे पर पडी लकीरों से ...
आईना ,जो टंगा होता था खिडकी से आती
सूर्य की रोशनी में ,ताकि पढ़ सके वो मुझे साफ़ साफ़
अब पड़ा है खुद अँधेरे में रद्दी चीजों के साथ
ओंधा,... अप्रासंगिक होने के बाद, मेरी तरह
क्यूंकि बिम्ब अब उसके धुंधला गए हैं
और नज़र मेरी... ...
देह पर उग आई हैं उसके तमाम खरोंचें
बक्त के नुकीले नाखूनों की
हम दौनों ....
दो अनचाही चीजों की तरह
दौनों की धुंधलाई स्मृतियों में शेष ......
गहराई और जीवन की सच्चाई लिए हुए सुंदर रचना ....!!
जवाब देंहटाएंबधाई एवं शुभकामनायें.
दो अनचाही चीजों की तरह
जवाब देंहटाएंदौनों की धुंधलाई स्मृतियों में शेष ......
सच्ची और सटीक अभिव्यक्ति !!
धन्यवाद अनुपमा जी ,संगीता जी
जवाब देंहटाएंहम दौनों ....
जवाब देंहटाएंदो अनचाही चीजों की तरह
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति